geet gata hoo mai......

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Friday, October 22, 2021

माँ

*A DINNER DATE*

एक दिन अचानक मेरी पत्नी मुझसे बोली - "सुनो, अगर मैं तुम्हे किसी और के साथ डिनर और फ़िल्म के लिए बाहर जाने को कहूँ तो तुम क्या कहोगे"।
मैं बोला - " मैं कहूँगा कि अब तुम मुझे प्यार नहीं करती"।
उसने कहा - "मैं तुमसे प्यार करती हूँ, लेकिन मुझे पता है कि यह औरत भी आपसे बहुत प्यार करती है और आप के साथ कुछ समय बिताना उनके लिए सपने जैसा होगा"। 

वह अन्य औरत कोई और नहीं मेरी माँ थी। जो मुझ से अलग अकेली रहती थी। अपनी व्यस्तता के कारण मैं उन से मिलने कभी कभी ही जा पाता था। 

मैंने माँ को फ़ोन कर उन्हें अपने साथ रात के खानेे और एक फिल्म के लिए बाहर चलने के लिए कहा।

"तुम ठीक तो हो,ना। तुम दोनों के बीच कोई परेशानी तो नहीं" माँ ने पूछा

मेरी माँ थोडा शक्की मिजाज़ की औरत थी। उनके लिए मेरा इस किस्म का फ़ोन मेरी किसी परेशानी का संकेत था।
" नहीं कोई परेशानी नहीं। बस मैंने सोचा था कि आप के साथ बाहर जाना एक सुखद अहसास होगा" मैंने जवाब दिया और कहा 'बस हम दोनों ही चलेंगे"।

उन्होंने इस बारे में एक पल के लिए सोचा और फिर कहा, 'ठीक है।' 

शुक्रवार की शाम को जब मैं उनके घर पर पहुंचा तो मैंने देखा है वह भी दरवाजे पर इंतजार कर रही थी। वो एक सुन्दर पोशाक पहने हुए थी और उनका चहेरा एक अलग सी ख़ुशी में चमक रहा था।

कार में माँ ने कहा " 'मैंने अपनी friends को बताया कि मैं अपने बेटे के साथ बाहर  खाना खाने के लिए जा रही हूँ। वे काफी प्रभावित थी"।

हम लोग माँ की पसंद वाले एक रेस्तरां पहुचे जो बहुत सुरुचिपूर्ण तो नहीं मगर  अच्छा और आरामदायक था। हम बैठ गए, और मैं मेनू देखने लगा। मेनू पढ़ते हुए मैंने आँख उठा कर देखा तो पाया कि वो मुझे ही देख रहीं थी और एक उदास सी मुस्कान उनके होठों पर थी। 

'जब तुम छोटे थे तो ये मेनू मैं तुम्हारे लिए पढ़ती थी' उन्होंने कहा।

'माँ इस समय मैं इसे आपके लिए पढना चाहता हूँ,' मैंने जवाब दिया।

खाने के दौरान, हम में एक दुसरे के जीवन में घटी हाल की घटनाओं पर चर्चा होंने लगी। हम ने आपस में इतनी ज्यादा बात की, कि पिक्चर का समय कब निकल गया हमें पता ही नही चला।

बाद में वापस घर लौटते समय माँ ने कहा कि अगर अगली बार मैं उन्हें बिल का पेमेंट करने दूँ, तो वो मेरे साथ दोबारा डिनर के लिए आना चाहेंगी।
मैंने कहा "माँ जब आप चाहो और बिल पेमेंट कौन करता है इस से क्या फ़र्क़ पड़ता है।
माँ ने कहा कि फ़र्क़ पड़ता है और अगली बार बिल वो ही पे करेंगी।

"घर पहुँचने पर पत्नी ने पूछा" - कैसा रहा।
"बहुत बढ़िया, जैसा सोचा था उससे कही ज्यादा बढ़िया" - मैंने जवाब दिया।

इस घटना के कुछ दिनबाद, मेरी माँ का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। यह इतना अचानक हुआ कि मैं उनके लिए कुछ नहीं कर पाया । 

माँ की मौत के कुछ समय बाद, मुझे एक लिफाफा मिला जिसमे उसी रेस्तरां की एडवांस पेमेंट की रसीद के साथ माँ का एक ख़त था जिसमे माँ ने लिखा था " मेरे बेटे मुझे पता नहीं कि मैं तुम्हारे साथ दोबारा डिनर पर जा पाऊँगी या नहीं इसलिए मैंने दो लोगो के खाने के अनुमानित बिल का एडवांस पेमेंट कर दिया है। अगर मैं नहीं जा पाऊँ तो तुम अपनी पत्नी के साथ भोजन करने जरूर जाना।
उस रात तुमने कहा था ना कि क्या फ़र्क़ पड़ता है।  मुझ जैसी अकेली रहने वाली बूढी औरत को फ़र्क़ पड़ता है, तुम नहीं जानते उस रात तुम्हारे साथ बीता हर पल मेरे जीवन के सबसे बेहतरीन समय में एक था।
भगवान् तुम्हे सदा खुश रखे।
I love you".
तुम्हारी माँ।

Thursday, October 14, 2021

*सुहिणी सोच के फ़ैमिली गरबा में आरती कोडवानी को मिला गरबा क्वीन अवार्ड*


*सुहिणी सोच के फ़ैमिली गरबा में आरती कोडवानी को मिला गरबा क्वीन अवार्ड*
सुहिणी सोच संस्था द्वारा फैमिली गरबा का आयोजन 13 अक्टूबर को अष्टमी के उपलक्ष्य में जय शक्ति धाम धर्मशाला तेलीबांधा में किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत माता दुर्गा की आरती से की गई। कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए  बहुत सारी प्रतिस्पर्धाएं रखी गई जैसे गरबा क्विन, गरबा किंग, बेस्ट चौकड़ी ,बेस्ट छकड़ी, बेस्ट घोड़ा डांस, कन्टिन्यू डांसर, बेस्ट ग्रुप, बेस्ट कपल एवं बच्चों के लिए भी स्पर्धाएँ रखी गई
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में छत्तीसगढ़ सिंधी पंचायत के अध्यक्ष श्री श्रीचंद सुंदरानी एवं मंजू सुंदरानी, पार्षद एवं एमआईसी सदस्य श्री अजीत कुकरेजा एवं  श्रेया कुकरेजा तथा शंकर नगर के पूज्य सिंधी पंचायत के अध्यक्ष श्री प्रहलाद शादीजा एवं नीता शादीजा को आमंत्रित किया गया।
निर्णायक के रूप में राशि बलवानी एवं रीना जोतवानी को आमंत्रित किया गया था।
जिन्होंने यह प्रतियोगिता जीती उनके नाम इस प्रकार है - बेस्ट गरबा क्वीन आरती कोडवानी, बेस्ट गरबा किंग हिमांशु, बेस्ट चौकड़ी हर्षिता अग्रवाल, बेस्ट छकड़ी पूनम और सोनी, बेस्ट घोड़ा डांस सोनिया कुकरेजा, कंटिन्यू डांसर वंशिका और हर्षिता जयसिंघानी,बेस्ट डांस ग्रुप शादीजा ग्रुप, बेस्ट कपल दीपेश और रेणुका ददलानी।
कार्यक्रम का संचालन दीक्षा बुधवानी, पूनम बजाज, शालिनी पृथ्यानी, सोनिया गंगवानी, एवं वंशिका माखीजा ने किया।
कार्यक्रम में साईं रामचंद जी वाधवा जी मनोहर लाल वाधवा नारायण दास महेश लाल राष्ट्रीय अध्यक्ष सीए चेतन तारवानी, राजू भाई तारवानी,, संस्थापक मनीषा तारवानी, अध्यक्ष काजल लालवानी, सचिव  माही बुलानी सहित अनेक लोग इस कार्यक्रम में शामिल हुए। कार्यक्रम के पश्चात रात्रि भोज की व्यवस्था की गई।

प्रेस विज्ञप्ति सुहिणी सोच की मीडिया प्रभारी ज्योति बुधवानी के द्वारा जारी की गई।

*ज्योति बुधवानी*
93039 09300
मीडिया प्रभारी

*सुहिणी सोच के फ़ैमिली गरबा में आरती कोडवानी को मिला गरबा क्वीन अवार्ड*


*सुहिणी सोच के फ़ैमिली गरबा में आरती कोडवानी को मिला गरबा क्वीन अवार्ड*
सुहिणी सोच संस्था द्वारा फैमिली गरबा का आयोजन 13 अक्टूबर को अष्टमी के उपलक्ष्य में जय शक्ति धाम धर्मशाला तेलीबांधा में किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत माता दुर्गा की आरती से की गई। कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए  बहुत सारी प्रतिस्पर्धाएं रखी गई जैसे गरबा क्विन, गरबा किंग, बेस्ट चौकड़ी ,बेस्ट छकड़ी, बेस्ट घोड़ा डांस, कन्टिन्यू डांसर, बेस्ट ग्रुप, बेस्ट कपल एवं बच्चों के लिए भी स्पर्धाएँ रखी गई
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में छत्तीसगढ़ सिंधी पंचायत के अध्यक्ष श्री श्रीचंद सुंदरानी एवं मंजू सुंदरानी, पार्षद एवं एमआईसी सदस्य श्री अजीत कुकरेजा एवं  श्रेया कुकरेजा तथा शंकर नगर के पूज्य सिंधी पंचायत के अध्यक्ष श्री प्रहलाद शादीजा एवं नीता शादीजा को आमंत्रित किया गया।
निर्णायक के रूप में राशि बलवानी एवं रीना जोतवानी को आमंत्रित किया गया था।
जिन्होंने यह प्रतियोगिता जीती उनके नाम इस प्रकार है - बेस्ट गरबा क्वीन आरती कोडवानी, बेस्ट गरबा किंग हिमांशु, बेस्ट चौकड़ी हर्षिता अग्रवाल, बेस्ट छकड़ी पूनम और सोनी, बेस्ट घोड़ा डांस सोनिया कुकरेजा, कंटिन्यू डांसर वंशिका और हर्षिता जयसिंघानी,बेस्ट डांस ग्रुप शादीजा ग्रुप, बेस्ट कपल दीपेश और रेणुका ददलानी।
कार्यक्रम का संचालन दीक्षा बुधवानी, पूनम बजाज, शालिनी पृथ्यानी, सोनिया गंगवानी, एवं वंशिका माखीजा ने किया।
कार्यक्रम में साईं रामचंद जी वाधवा जी मनोहर लाल वाधवा नारायण दास महेश लाल राष्ट्रीय अध्यक्ष सीए चेतन तारवानी, राजू भाई तारवानी,, संस्थापक मनीषा तारवानी, अध्यक्ष काजल लालवानी, सचिव  माही बुलानी सहित अनेक लोग इस कार्यक्रम में शामिल हुए। कार्यक्रम के पश्चात रात्रि भोज की व्यवस्था की गई।
प्रेस विज्ञप्ति सुहिणी सोच की मीडिया प्रभारी ज्योति बुधवानी के द्वारा जारी की गई।
*ज्योति बुधवानी*
93039 09300
मीडिया प्रभारी

कानून के ये पक्ष जरूर जानें

हमारेे देश में कानूनन कुछ ऐसी हकीक़तें है, जिसकी जानकारी हमारे पास नहीं होने के कारण  हम अपने अधिकार से मेहरूम रह जाते है।
तो चलिए ऐसे ही कुछ  
*पांच रोचक फैक्ट्स* की जानकारी आपको देते है, 
जो जीवन में कभी भी उपयोगी हो सकती है.

*(1)  शाम के वक्त महिलाओं की गिरफ्तारी नहीं हो सकती*-
कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, सेक्शन 46 के तहत शाम 6 बजे के बाद और सुबह 6 के पहले भारतीय पुलिस किसी भी महिला को गिरफ्तार नहीं कर सकती, फिर चाहे गुनाह कितना भी संगीन क्यों ना हो. अगर पुलिस ऐसा करते हुए पाई जाती है तो गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ शिकायत (मामला) दर्ज की जा सकती है. इससे उस पुलिस अधिकारी की नौकरी खतरे में आ सकती है.

*(2.) सिलेंडर फटने से जान-माल के नुकसान पर 40 लाख रूपये तक का बीमा कवर क्लेम कर सकते है*-
पब्लिक लायबिलिटी पॉलिसी के तहत अगर किसी कारण आपके घर में सिलेंडर फट जाता है और आपको जान-माल का नुकसान झेलना पड़ता है तो आप तुरंत गैस कंपनी से बीमा कवर क्लेम कर सकते है. आपको बता दे कि गैस कंपनी से 40 लाख रूपये तक का बीमा क्लेम कराया जा सकता है. अगर कंपनी आपका क्लेम देने से मना करती है या टालती है तो इसकी शिकायत की जा सकती है. दोषी पाये जाने पर गैस कंपनी का लायसेंस रद्द हो सकता है.

*(3) कोई भी हॉटेल चाहे वो 5 स्टार ही क्यों ना हो… आप फ्री में पानी पी सकते है और वाश रूम इस्तमाल कर सकते है*-
इंडियन सीरीज एक्ट, 1887 के अनुसार आप देश के किसी भी हॉटेल में जाकर पानी मांगकर पी सकते है और उस हॉटल का वाश रूम भी इस्तमाल कर सकते है. हॉटेल छोटा हो या 5 स्टार, वो आपको रोक नही सकते. अगर हॉटेल का मालिक या कोई कर्मचारी आपको पानी पिलाने से या वाश रूम इस्तमाल करने से रोकता है तो आप उन पर कारवाई  कर सकते है. आपकी शिकायत से उस हॉटेल का लायसेंस रद्द हो सकता है.

 *(4) गर्भवती महिलाओं को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता*-
मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 के मुताबिक़ गर्भवती महिलाओं को अचानक नौकरी से नहीं निकाला जा सकता. मालिक को पहले तीन महीने की नोटिस देनी होगी और प्रेगनेंसी के दौरान लगने वाले खर्चे का कुछ हिस्सा देना होगा. अगर वो ऐसा नहीं करता है तो  उसके खिलाफ सरकारी रोज़गार संघटना में शिकायत कराई जा सकती है. इस शिकायत से कंपनी बंद हो सकती है या कंपनी को जुर्माना भरना पड़ सकता है.

*(5) पुलिस अफसर आपकी शिकायत लिखने से मना नहीं कर सकता*
आईपीसी के सेक्शन 166ए के अनुसार कोई भी पुलिस अधिकारी आपकी कोई भी शिकायत दर्ज करने से इंकार नही कर सकता. अगर वो ऐसा करता है तो उसके खिलाफ वरिष्ठ पुलिस दफ्तर में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. अगर वो पुलिस अफसर दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम *(6)*महीने से लेकर 1  साल तक की जेल हो सकती है या फिर उसे अपनी नौकरी गवानी पड़ सकती है.

रवि के गुरुबक्षणी

कई मूरख आदर्श बन जाते हैं

एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई कि ये फिल्म अभिनेता या अभिनेत्री ऐसा क्या करते हैं कि इनको एक-एक फिल्म के लिए 50 करोड़ या 100 करोड़ रुपये मिलते हैं?
जिस देश में शीर्षस्थ वैज्ञानिकों, डाक्टरों, इंजीनियरों, प्राध्यापकों, अधिकारियों इत्यादि को प्रतिवर्ष 10 लाख से 20 लाख रुपये मिलते हों, उस देश में एक फिल्म अभिनेता प्रतिवर्ष 10 करोड़ से 100 करोड़ रुपए तक कमा लेता है। आखिर ऐसा क्या करता है वो?

देश के विकास में क्या योगदान है इनका? आखिर वह ऐसा क्या करता है कि वह मात्र एक वर्ष में इतना कमा लेता है जितना देश के शीर्षस्थ वैज्ञानिक को शायद 100 वर्ष लग जाएं!

आज जिन तीन क्षेत्रों ने देश की नई पीढ़ी को मोह रखा है, वह है - सिनेमा, क्रिकेट और राजनीति।

इन तीनों क्षेत्रों से सम्बन्धित लोगों की कमाई और प्रतिष्ठा सभी सीमाओं के पार है।

यही तीनों क्षेत्र आधुनिक युवाओं के आदर्श हैं, जबकि वर्तमान में इनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगे हुए हैं।

तो वह देश और समाज के लिए व्यर्थ ही है।

बॉलीवुड में ड्रग्स व वेश्यावृत्ति, क्रिकेट में मैच फिक्सिंग, राजनीति में गुंडागर्दी व भ्रष्टाचार। इन सबके पीछे मुख्य कारण धन ही है और यह धन उन तक हम ही पहुँचाते हैं। 

हम ही अपना धन फूंककर अपनी हानि कर रहे हैं। यही मूर्खता की पराकाष्ठा है।

■ 70-80 वर्ष पहले तक प्रसिद्ध अभिनेताओं को सामान्य वेतन मिला करता था। 

■ 30-40 वर्ष पहले तक क्रिकेटरों की कमाई भी कोई खास नहीं थी।

■ 30-40 वर्ष पहले तक राजनीति में भी इतनी लूट नहीं थी।

धीरे-धीरे ये हमें लूटने लगे और हम शौक से खुशी-खुशी लुटते रहे।
 
हम इन माफियाओं के चंगुल में फंसकर हम अपने बच्चों और अपने देश के भविष्य को
बर्बाद करते रहे हैं।

50 वर्ष पहले तक फिल्में इतनी अश्लील और फूहड़ नहीं बनती थीं। क्रिकेटर और नेता इतने अहंकारी नहीं थे। आज तो ये हमारे भगवान (?) बने बैठे हैं। अब आवश्यकता है इनको सिर पर से उठाकर पटक देने की ताकि इन्हें अपनी हैसियत पता चल सके।

एक बार वियतनाम के राष्ट्रपति हो-ची-मिन्ह भारत आए थे तो भारतीय मंत्रियों के साथ हुई मीटिंग में उन्होंने पूछा - "आप लोग क्या करते हैं?"

इन लोगों ने कहा - "हम लोग राजनीति करते हैं।"

वे समझ नहीं सके इस उत्तर को तो उन्होंने दुबारा पूछा - "मेरा मतलब, आपका पेशा क्या है?"

इन लोगों ने कहा - "राजनीति ही हमारा पेशा है।"

हो-ची मिन्ह तनिक झुंझलाए और बोले - "शायद आप लोग मेरा मतलब नहीं समझ रहे। राजनीति तो मैं भी करता हूँ, लेकिन पेशे से मैं किसान हूँ और खेती करता हूँ। खेती से मेरी आजीविका चलती है। सुबह-शाम मैं अपने खेतों में काम करता हूँ। दिन में राष्ट्रपति के रूप में देश के लिए अपना दायित्व निभाता हूँ।"

भारतीय प्रतिनिधिमंडल निरुत्तर हो गया। कोई जबाब नहीं था उनके पास।

जब हो-ची-मिन्ह ने दोबारा वो ही बातें पूछी तो प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने झेंपते हुए कहा - "राजनीति करना ही हम सबका पेशा है।"

स्पष्ट है कि भारतीय नेताओं के पास इसका कोई उत्तर ही नहीं था। बाद में एक सर्वेक्षण से पता चला कि भारत में 6 लाख से अधिक लोगों की आजीविका राजनीति से ही चलती थी। आज यह संख्या करोड़ों में पहुंच चुकी है।

कुछ महीनों पहले ही जब कोरोना से यूरोप तबाह हो रहा था, तो डाक्टरों को लगातार कई महीनों से थोड़ा भी अवकाश नहीं मिल रहा था, तब पुर्तगाल की एक डॉक्टरनी ने खीजकर कहा था - *"रोनाल्डो के पास जाओ ना जिसे तुम करोड़ों डॉलर देते हो।*

"मैं तो कुछ हजार डॉलर ही पाती हूँ।"

मेरा दृढ़ विचार है कि जिस देश में युवा छात्रों के आदर्श वैज्ञानिक, शोधार्थी, शिक्षाशास्त्री आदि ना होकर अभिनेता, राजनेता और खिलाड़ी होंगे, उनकी स्वयं की आर्थिक उन्नति भले ही हो जाए, लेकिन देश की उन्नत्ति कभी नहीं होगी। सामाजिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक, रणनीतिक रूप से देश पिछड़ा ही रहेगा हमेशा। ऐसे देश की एकता और अखंडता हमेशा खतरे में ही रहेगी।

जिस देश में अनावश्यक और अप्रासंगिक क्षेत्र का वर्चस्व बढ़ता रहेगा, वह देश दिन-प्रतिदिन कमजोर होता जाएगा। देश में भ्रष्टाचारी व देशद्रोहियों की संख्या बढ़ती रहेगी। ईमानदार लोग हाशिये पर चले जाएँगे व राष्ट्रवादी लोग कठिन जीवन जीने को विवश होंगे।

सभी क्षेत्रों में कुछ अच्छे व्यक्ति भी होते हैं।

उनका व्यक्तित्व मेरे लिए हमेशा सम्माननीय रहेगा।

आवश्यकता है हम प्रतिभाशाली, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, समाजसेवी, जुझारू, देशभक्त, राष्ट्रवादी, वीर लोगों को अपना आदर्श बनाएं।

नाचने-गानेवाले, ड्रगिस्ट, लम्पट, गुंडे-मवाली, भाई-भतीजा-जातिवादी और दुष्ट देशद्रोहियों को जलील करने और सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से बॉयकॉट करने की प्रवृत्ति विकसित करनी होगी हमें। आप स्वयं तय करें कि इन लोगों का हमारे देश के विकास में क्या योगदान है। 
यदि हम ऐसा कर सकें तो ठीक, अन्यथा देश की अधोगति भी तय है। हमारे बच्चे मूर्खों की तरह इनको आइडियल बनाए हुए हैं।
कृपया विचार अवश्य करें 
यह पोस्ट उचित लगे तो अपने शुभचिन्तको को भी भेजें.
अज्ञात भारतीय

जो अपने को भूल जाए उसे मारने का कोई उपाय नहीं

जो अपने को भूल जाए उसे मारने का कोई उपाय नहीं- 

मैंने सुना है कि युनान में एक बहुत बडा मूर्तिकार हुआ । 
उस मूर्तिकार की बडी प्रशंसा थी सारे दूर-दूर के देशों तक । 
और लोग कहते थे कि अगर उसकी मूर्ति रखी हो बनी हुई और जिस आदमी की उसने मूर्ति बनाई है वह आदमी भी उसके पडोस में खडा हो जाए श्वास बदं करके, तो बताना मुश्किल है कि मूल कौन है और मूर्ति कोन है । 
दोनों एक से मालूम होने लगते हैं ।उस मूर्तिकार की मौत करीब आई । तो उसने सोचा कि मौत को धोखा क्यों न दे दूँ ? 
उसने अपनी ही ग्यारह मूर्तिया बना कर तैयार कल लीं और उन ग्यारह मूर्तियों के साथ छिप कर खडा हो गया । मौत भीतर घुसी, उसने देखा, वहां बारह एक जैसे लोग हैं ।
 वह बहुत मुश्किल में पड़ गई होगी?, 
एक को लेने आई थी, बारह लोग थे, किसको ले जाए ? और फिर कौन असली है ? 
वह वापस लौटी और उसने परमात्मा से कहा कि मैं बहुत मुश्किल में पड़ गई, वहां बारह एक जैसे लोग हैं ! असली को कैसे खोजूं ? 
परमात्मा ने उसके कान में एक सूत्र कहा । और कहा, इसे सदा याद रखना । जब भी असली को खोजना हो, इससे खोज लेना,यह तरकीब है असली को खोजने की ।
 मौत वापस लोटी, उस कमरे के भीतर गई, उसने मूर्तियों को देखा और कहा मूर्तिया बहुत सुंदर बनी है, सिर्फ एक भूल रह गई । वह जो चित्रकार था वह बोला, कौन सी भूल? 
उस मृत्यु ने कहा, यही कि तुम अपने को नहीं भूल सकते । बाहर आ जाओ! और परमात्मा ने मुझे कहा कि जो अपने को नहीं भूल सकता उसे तो मरना ही पडेगा और जो अपने को भूल जाए उसे मारने का कोई उपाय नहीं, वह अमृतको उपलब्ध हो जाता है।

Wednesday, October 13, 2021

हारना सीखो झुकना सीखो

छोटी सी बात को लेकर आपस में ठीक से बात न करना या बात बंद कर देना अच्छे से अच्छे रिश्ते को कमज़ोर कर देता है। जल्दबाज़ी में प्रतिक्रिया कर देना ऐसे मामले में एक और गलती होती है। 

हर आदमी अपनी सोच, अपनी मान्यता, अपनी धारणा, अपनी प्राथमिकता और अपने भावात्मक जगत के लिए आग्रह रखता है और उसके अंदर इनकी रक्षा करने की भावना प्रतिरोध क्षमता के रूप में मौजूद रहती है जो तुम भांप नहीं पाते, समझ नहीं पाते या फिर परवाह नहीं करते। 

जैसे ही तुम उसके विरुद्ध कोई बात कहते या करते हो उसकी वही प्रतिरोधी क्षमता अपने बचाव के तर्कों के साथ मैदान में कूद जाती है। तुमको लगता है कि अरे यार मैंने ऐसा क्या कह दिया जो इतना हाइपर होकर सामने वाला ओवर रियेक्ट कर रहा है। 

हमे ये समझना होगा कि जिसे हम एक साधारण सी बात समझ रहे हैं वो सामने वाले के नज़रिए से एक बड़ी बात हो सकती है। दो लोगों का नज़रिया एक दूसरे से अलग हो सकता है। हो सकता है मैं खुद उसे अपनी बात ठीक से समझा नहीं पाया या वो समझना नहीं चाहता। 

और ऐसे तर्क वितर्क के दौरान अक्सर हम एक दूसरे पर व्यंग्य करते हैं, उलाहना देते हैं, अपनी बहस का दायरा बढ़ाते हुए उन बातों को भी शामिल कर लेते हैं जिनका इस वाद विवाद से कोई संबंध ही नहीं था। "कहीं की बात कहीं जोड़ देती है, मेरी हिम्मत को वो ऐसे तोड़ देती है।" 

अपने अपने पूर्वाग्रहों की गुप्ती से हम सामने वाले की भावनाओं को छलनी कर देते हैं। ऊपर से समझदारी का मलहम लगाने का नाटक करते हैं पर तंज कस कस के संबंध के कस बल ढीले कर देते हैं। कोई जीतता नहीं सब हारते हैं। 

एक एक दिन जीवन का बेशकीमती है। ज़्यादा अटको मत, उलझो मत। समझौता कर लो। कुछ नहीं होता। मैं बता रहा हूँ जीवन के सुंदर पल हाथ से निकल जाएंगे। अहम, गुस्से, बदला चुकाने की भावना को थूक दो। 

कोई नहीं जानता जिससे तुम नाराज़ हो कर मुंह फुला कर बैठे हो वो कब बिछड़ जाए। बिछड़ गया तो बहुत बहुत मलाल रह जाएगा कि बेवजह एक अच्छे रिश्ते को बिगाड़ लिया। दुनिया में बहुत सी चीजें कभी वापस नहीं होती, गया हुआ वक़्त और।बिगड़ चुका रिश्ता उनमे अहम है। 

जिसे ज़रा सा सॉरी बोल कर तुम फिर से रिश्ते में मिठास घोल सकते हो उसे उम्र भर के लिए क्यों एक ज़ख्म पालने को विवश कर रहे हो। ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं। मत अड़ो, खास कर उनके सामने जो सच मे तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण हैं, जो तुम्हारे अभिन्न भाग हैं जो तुम्हारे लिए ज़रूरी हैं। हर वाद को जीतने और अपने मन की बात पूरी करवाने की ज़िद छोड़ दो। 

हारना सीखो, झुकना सीखो। रिश्तों को छोड़ना नहीं थामना सीखो। ज़रा शांत बैठ कर आज सोचो कौन कौन तुमसे नाराज़ है नाखुश है और क्यों है, उसमे तुम्हारी जितनी भूमिका है उसे साफ कर दो, माफी मांग के रिश्ते को बड़ा कर लो। थोड़ा सा अहम थोड़ी सी ज़िद छोड़ना सीख लो। बस फिर जीवन आसान है। 

@ मन्यु आत्रेय

Tuesday, October 12, 2021

प्रेरक प्रसंग - विद्वत्ता

विद्वान ब्राह्मण - प्रेरक प्रसंग 

कालिदास बोले :- माते पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा.
स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।
मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।
कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।

कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।
पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?
.
(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)

कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।
स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ?
(कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)

कालिदास बोले :- मैं हठी हूँ ।
.
स्त्री बोली :- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ?
(पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)

कालिदास ने कहा :- फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।
.
स्त्री ने कहा :- नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो।
मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।
(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)

वृद्धा ने कहा :- उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)
माता ने कहा :- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।
.
कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।

शिक्षा :-
विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है।
दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए.....
अन्न के कण को
"और"
आनंद के क्षण को...■★★

प्रस्तुति - रवि के गुरुबक्षणी

स्ट्रीट 5 धर्मशाला के सामने गुरुबक्षणी निवास रविग्राम तेलीबांधा रायपुर छग 492006 
मोबाइल 8109224468

लघुकथा सवाल

आज एक स्कूल में शिक्षकों को अनोखा अनुभव हुआ।
स्कूल में झामलू नाम का एक बालक है।
कक्षा शिक्षक उसकी कॉपी चैक कर रहे थे।
कॉपी के फ्रन्ट में अपने नाम के साथ झामलू ने अपनी कक्षा भी लिखी हुई थी, जिसे देख शिक्षक चकित रह गए।
उसमें कक्षा :- 30 री, लिखा हुआ था।
शिक्षक ने झामलू को करीब बुलाया और समझाया कि, कक्षा 3 री या कक्षा तीसरी लिखा जाता है। इस प्रकार कक्षा 30 री लिखना सही नहीं है।
इसपर झामलू ने शिक्षक को एक अन्य शब्द दिखाया और वो शब्द था - 40 गाँव।
फिर झामलू ने प्रश्न किया कि, यह शब्द 40 गाँव ( चालीसगाँव ) पढ़ा जाता है तो फिर 30 री को ( तीसरी ) क्यों नहीं पढ़ा जाएगा ??
आपने 3 री बताया है, उसे तो तीनरी पढ़ा जायेगा🤔🤔

प्रस्तुति 
रवि के गुरुबक्षणी 
स्ट्रीट 5 धर्मशाला के सामने गुरुबक्षणी निवास रविग्राम तेलीबांधा रायपुर छग 492006 
मोबाइल 8109224468

Sunday, October 10, 2021

मैं आज़ाद देश का आज़ाद नागरिक हूँ।

बहुत चिंता हो रही है, देश का बुरा हाल है, बहुत विकट स्थिति से गुज़र रहा है......

गाड़ियों के शोरूम पर जाईये, नए मॉडल्स पे वेटिंग चल रही है , ग्राहकों को 6-6महीने तक गाड़ियों का इंतेजार करना पड़ रहा है !

रेस्टोरेंट में खाली टेबल नहीं मिल रही है , लाइन लग रही है बहुत से रेस्टोरेंटस पर !

शॉपिंग मॉल में पार्किंग की जगह नहीं है इतनी भीड़ है।

सिनेमा हॉल अच्छा खासा बिज़नस कर रहे हैं !

कई मोबाइल कंपनियों के मॉडल आउट ऑफ स्टॉक हैं , एप्पल लांच होते हुए ही आउट ऑफ स्टॉक हो जा रहा है !

ऑनलाइन शॉपिंग के दौर में भी वर्किंग डे में भी शाम को बाजारों में पैर रखने को जगह नहीं है ,

रोज जाम जैसे हालात पैदा हो जाते हैं !

ऑनलाइन शॉपिंग इंडस्ट्री अपने बूम पर है !!!

मगर लोगो को कह रहे हैं कि पट्रोल १ रुपया बढ़ने से ऊनके कमर तोड़ दी है।

मेरे घर में जब बेमतलब की लाइटें जलती रहती हैं, पंखा चलता रहता है, टीवी चलता रहता है तब मुझे कोई तकलीफ नहीं होती परन्तु बिजली का दाम 
दस पैसे बढ़ते ही मेरी अंतरात्मा कराह उठती है।

जब मेरे बच्चे सोलह डिग्री सेंटीग्रेड पर एसी चलाकर कम्बल ओढ़कर सोते हैं तब मैं कुछ नहीं बोल पाता लेकिन बिजली का रेट बढ़ते ही मेरा पारा चढ़ जाता है।

जब मेरा गीजर चौबीसों घंटे ऑन रहता है तब मुझे कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन बिजली का रेट बढ़ते ही मेरी खुजली बढ़ जाती है।

जब मेरी कामवाली या घरवाली कुकिंग गैस बर्बाद करती है तब मेरी जुबान नहीं हिलती लेकिन गैस 
का दाम बढ़ते ही मेरी ज़ुबान कैंची हो जाती है।

रेड लाइट पर कार का इंजन बन्द करना मुझे गँवारा नहीं, घर से दो गली दूर दूध लेने मैं गाड़ी से जाता हूँ, वीकेंड में मैं बेमतलब भी दस बीस किलोमीटर गाड़ी चला लेता हूँ लेकिन अगर पेट्रोल का दाम एक रूपया बढ़ जाए तो मुझे मिर्ची लग जाती है।

एक रात दो हज़ार का डिनर खाने में मुझे तकलीफ नहीं होती लेकिन बीस- पचास रुपए की पार्किंग फीस मुझे बहुत चुभती है।

मॉल में दस हज़ार की शॉपिंग पर मैं एक रूपया भी नहीं छुड़ा पाता लेकिन हरी सब्जी के ठेले वाले से मोलभाव किए बगैर मेरा खाना ही नहीं पचता।

मेरे तनख्वाह रीविजन के लिए मैं रोज कोसता हूँ सरकार को लेकिन मेरी कामवाली की तनख्वाह बढ़ाने की बात सुनते ही मेरा बीपी बढ़ जाता है !!

मेरे बच्चे मेरी बात नहीं सुनते, कोई बात नहीं लेकिन प्रधानमंत्री मेरी नहीं सुनते तो मैं उनको तरह - तरह की गालियाँ देता हूँ।

मैं आज़ाद देश का आज़ाद नागरिक हूँ।

सरकार बदल  दूँगा लेकिन खुद को बदल नहीं सकता। jai hind

*गौसेवा ईश्वर सेवा*

 
गौपष्टमी के दिन गाय और बछड़े तथा गोपाल की पूजन का विधान है। *शास्त्रों में कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन गायों को भोजन खिलाता है, सेवा करता है तथा गायों का मंत्रोचार विधि से पूजन करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।*
*गाय को मां का दर्जा दिया गया है। जिस प्रकार एक मां अपनी संतान को हर सुख देना चाहती है, उसी प्रकार गौ माता अपने सेवकों को अपने कोमल हृदय में स्‍थान देती हैं और उनकी हर मनोकामना पूरी करती हैं।* ऐसी मान्‍यता है कि *गोपष्‍टमी* के दिन गौसेवा करने वाले व्‍यक्‍ति एवम उसके परिवार के संकट दूर हो जाते है
 बढ़ते कदम ने *घायल व बीमार गौमाता के उत्थान* के लिए *प्रभु श्री राम* की *माता कौशल्या धाम* चंदखुरी रोड मुरेठी स्थित आपकी अपनी *बढ़ते कदम गौशाला* में गोपष्टमी के अवसर पर विशेष रूप से *108 गौपूजन* का कार्यक्रम रखा है जिसे *महाराज सिंधु मंडल* के मार्गदर्शन में  मंत्रोचार एवम हवन पूजन के साथ किया जाएगा आप सभी सम्मानीय जन इस कार्यक्रम में सपरिवार सादर आमंत्रित है 

जानकारी हो कि *आपकी अपनी संस्था बढ़ते कदम* ने *दुर्घटनाग्रस्त और दूध ना देने वाली गायों* के सरंक्षण का बीड़ा उठाया है और सर्वसमाज के सहयोग से गोपष्टमी पर हुए गौपूजन की राशि से सालभर इन गौमाता की देखभाल की जाती है *विगत 8 वर्षों में संस्था ने एक्सीडेंटल और बीमार 750 गायों की सेवा की है वर्तमान में 194 गौमाता निवासरत है।* 

कार्यक्रम💐💐
दिनाक- *14 नवम्बर 2021 रविवार*
समय- *दोपहर 12 बजे से 4 बजे तक*
स्थान- *बढ़ते कदम गौशाला मुरेठी*
*संपर्क सूत्र*
*9329103090, 8344890000*

निवेदक🙏🙏
*बढ़ते कदम परिवार*

Saturday, October 9, 2021

ईश्वर से भेंट

"तुम्हारा परिचय क्या है "
     *************
एक संन्यासी सारी दुनिया की यात्रा करके भारत वापस लौटा था | एक छोटी सी रियासत में मेहमान हुआ |
उस रियासत के राजा ने जाकर संन्यासी को कहा :-

 स्वामी, एक प्रश्न बीस वर्षो से निरंतर पूछ रहा हूं | कोई उत्तर नहीं मिलता | क्या आप मुझे उत्तर देंगे ?

स्वामी ने कहा :- निश्चित दूंगा....आज तुम खाली नहीं लौटोगे | पूछो |

उस राजा ने कहा :- मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूं | ईश्वर को समझाने की कोशिश मत करना | मैं सीधा मिलना चाहता हूं |

उस संन्यासी ने कहा :- अभी मिलना चाहते हैं कि थोड़ी देर ठहर कर ?

राजा ने कहा : - माफ़ करिए, शायद आप समझे नहीं | मैं परम पिता परमात्मा की बात कर रहा हूं, आप यह तो नहीं समझे कि किसी ईश्वर नाम वाले आदमी की बात कर रहा हूं। जो आप कहते हैं कि अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हो ?

उस संन्यासी ने कहा :- महानुभाव, भूलने की कोई गुंजाइश नहीं है | मैं तो चौबीस घंटे परमात्मा से मिलाने का धंधा ही करता हूं | अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हैं, सीधा जवाब दें |

बीस साल से मिलने को उत्सुक हो और आज वक्त आ गया तो मिल लो |
राजा ने हिम्मत की, उसने कहा :- अच्छा मैं अभी मिलना चाहता हूं मिला दीजिए |

संन्यासी ने कहा : -कृपा करो, इस छोटे से कागज पर अपना नाम पता लिख दो ताकि मैं भगवान के पास पहुंचा दूं कि आप कौन हैं |

राजा ने लिखा - अपना नाम, अपना महल, अपना परिचय, अपनी उपाधियां और उसे दीं |

वह संन्यासी बोला कि महाशय, ये सब बाते मुझे झूठ और असत्य मालूम होती हैं जो आपने कागज पर लिखीं |

उस संन्यासी ने कहा :- मित्र, अगर तुम्हारा नाम बदल दें तो क्या तुम बदल जाओगे ?
तुम्हारी चेतना, तुम्हारी सत्ता, तुम्हारा व्यक्तित्व दूसरा हो जाएगा ?
उस राजा ने कहा :- नहीं, नाम के बदलने से मैं क्यों बदलूंगा ? नाम नाम है, मैं मैं हूं |

तो संन्यासी ने कहा : -एक बात तय हो गई कि नाम तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि तुम उसके बदलने से बदलते नहीं | आज तुम राजा हो, कल गांव के भिखारी हो जाओ तो बदल जाओगे ?

उस राजा ने कहा : -नहीं, राज्य चला जाएगा, भिखारी हो जाऊंगा, लेकिन मैं क्यों बदल जाऊंगा ?
मैं तो जो हूं हूं | राजा होकर जो हूं, भिखारी होकर भी वही होऊंगा |
न होगा मकान, न होगा राज्य, न होगी धन- संपति, लेकिन मैं ? मैं तो वही रहूंगा जो मैं हूं |

तो संन्यासी ने कहा :- तय हो गई दूसरी बात कि राज्य तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि राज्य छिन जाए तो भी तुम बदलते नहीं | तुम्हारी उम्र कितनी है ?
उसने कहा : - चालीस वर्ष |
संन्यासी ने कहा : -तो पचास वर्ष के होकर तुम दुसरे हो जाओगे ? बीस वर्ष या जब बच्चे थे तब दुसरे थे ?
उस राजा ने कहा :- नही | उम्र बदलती है, शरीर बदलता है लेकिन मैं ? मैं तो जो बचपन में था, जो मेरे भीतर था, वह आज भी है |

उस संन्यासी ने कहा :- फिर उम्र भी तुम्हारा परिचय न रहा, शरीर भी तुम्हारा परिचय न रहा |
फिर तुम कौन हो ? उसे लिख दो तो पहुंचा दूं भगवान के पास, नहीं तो मैं भी झूठा बनूंगा तुम्हारे साथ |
यह कोई भी परिचय तुम्हारा नहीं है|
राजा बोला :- तब तो बड़ी कठिनाई हो गई | उसे तो मैं भी नहीं जानता फिर ! जो मैं हूं, उसे तो मैं नहीं जानता ! इन्हीं को मैं जानता हूं मेरा होना |
उस संन्यासी ने कहा :- फिर बड़ी कठिनाई हो गई, क्योंकि जिसका मैं परिचय भी न दे सकूं, बता भी न सकूं कि कौन मिलना चाहता है, तो भगवान भी क्या कहेंगे कि किसको मिलना चाहता है ?

तो जाओ पहले इसको खोज लो कि तुम कौन हो | और मैं तुमसे कहे देता हूं कि जिस दिन तुम यह जान लोगे कि तुम कौन हो, उस दिन तुम आओगे नहीं भगवान को खोजने |
क्योंकि खुद को जानने में वह भी जान लिया जाता है जो परमात्मा है |🚩🚩🚩

Friday, October 8, 2021

चाय

निठल्ला बैठा मै चाय की दुकान में कुल्हड़ के चाय का मजा ले रहा था,तभी मुझे इक शानदार घटना दिखा, एक रिक्शावाला सुबह सुबह सवारी की तलाश में आधे नींद में सीट की गद्दी में हाथ के सहारे अर्द्ध निंद्रा का आनंद ले रहा था तभी अचानक एक 50 साल के मुच्छो पर ताव देते बाबू जी रिक्शेवाले के सामने प्रकट हुए ।
बाबू जी अपना पता बता कर बोले चलोगे क्या, अब रिक्शेवाले का नींद गायब था आंखो में रोशनी थी कि चलो सुबह सुबह एक ग्राहक मिला!
बोला बैठिए बाबू जी २५ रुपया लगेगा , बाबू जी तन के बोले नहीं २० रुपए दूंगा चलना है तो चलो ।
खैर बड़ी देर तक दोनों की मोलाई चली आखिर में रिक्शावाला तैयार हुआ चलने से पहले बाबू जी बोले चलो यार एक चाय पी लेते है, रिक्शावाला चाय वाले को एक चाय बोला, फिर बाबू जी तिरछी और हल्की आवाज में बोले एक नहीं दो , रिक्शावाला बोला मेरे पास पैसे नहीं आप पिलाओ तो पी लूंगा ।
उसके बाद जो बात बाबू जी ने बोला वो मेरा रोम रोम जीत लिया,। 
बाबूजी तन कर बोले तबसे तुमसे ५ रुपए की मोलाई इसलिए तो कर रहे थे क्योंकि मेरे पास कुल ३० रुपए ही बचे हैं और अकेले हम चाय पीते नहीं हैं।
रिक्शावाला कुछ केह ना सका लेकिन चाय पीते वक़्त उसका चेहरा बता रहा था कि वो नुकसान नहीं सह रहा था,और इस प्रेम के लिए शायद वो थोड़ा नुकसान सह भी लेता ❤️

मै बैठा बैठा सिर्फ ये सोच रहा था कि आखिर नुकसान हुआ तो हुआ किसका??

लक्की लाडो

लक्की लाडो

रात के 12 बज रहे थे उसका फोन आया "हेल्लो" किसी ने फुसफुसा-हट भरे लफ्जों में कहा। "हां, बोलो" उसने भी होले से कहा। "सब तैयारी हो गई क्या, सुबह 4 बजे की बस है।" "मैंने अपने कपड़ों का बैग तो पैक कर लिया है, पैसे और गहने लेने हैं।" "अपने सब डॉक्यूमेंट भी ले लेना, हो सकता है दोनों को नोकरी करनी पड़े, नया घर संसार जो बसाना है।" "ओके, मैं सबकुछ लेकर तुम्हे कॉल करती हूं।"

उसने सबसे पहले माँ की अलमारी खोली, और उसमें से गहनों का डिब्बा निकाला, अपने लिए बनवाया गया मंगलसूत्र बैग में डाला, अंगूठी और झुमके पहन लिए, चूड़ियों का डिब्बा उठाकर बैग में डाल रही थी कि माँ की तस्वीर नीचे गिर पड़ी , उसे याद आया माँ की बरसों की इच्छा थी सोने का चूड़ा पहनने की, मगर जब पापा का एरियर मिला था तो जो चूड़ा बनवाया गया वो माँ ने ये कहकर उसके लिए सम्भाल कर रख दिया था कि जब बिट्टू इंजीनियरिंग करके नोकरी लग जायेगा खूब सारे बनवा लुंगी, अभी तो तेरी शादी के लिए रख लेती हूं, मेरी लाडो कितनी सुंदर लगेगी। उसने तस्वीर वापस अलमारी में रखी और चूड़ा बैग में रख लिया।

अब बारी थी नकदी की, घर मे 75000 पड़े थे पापा कल ही बैंक से एज्युकेशन लोन लेकर आये थे, बिट्टू का आई आई टी का दूसरा साल चल रहा था, घर के रुपये पैसे का हिसाब और चाबी उसी के पास रहती थी, पापा हमेशा कहते हैं, जब ये पैदा हुई उससे पहले मैं स्टेशन पर कुली का काम करता था, जैसे ही ये पैदा हुई मेरी सरकारी नोकरी लग गई, यही मेरे भाग्य की देवी है, मेरी लाडो बेटी।" उसने अपने सभी डॉक्यूमेंट बैग में रख लिए,  अब उसे चैक करना था की घर मे जाग तो नहीं है सब सो तो रहे हैं ना, सबसे पहले उसने बिट्टू के कमरे के दरवाजे से अंदर झांका, बिट्टू अभी तक पढ़ रहा था, उसकी खाने की थाली वैसे ही ढकी पड़ी थी जैसी वो रखकर आई थी। अगले कमरे में झांका माँ गहरी नींद सोई थी दवा लेकर । मां हमेशा कहती है इस दवा में कोई गड़बड़ है जो नींद बहुत आती है ये मुई शुगर भी बुरी बीमारी है लगकर खत्म ही नहीं होती, दरवाज़े की झिर्री में से पापा दिखाई दे रहे थे, वो अपनी वर्किंग टेबल पर बैठे व्यापारियों का बही खाता तैयार कर रहे थे,अभी कुछ दिन पहले ही उन्होंने ये नया काम ढूंढा था, पापा कहते है कॉमर्स पढ़ा हूँ बही खाते भूलने लगा था , चलो इससे भूलूंगा भी नही और एक्स्ट्रा इनकम भी हो जाएगी। 

सब अपने काम मे व्यस्त थे वो अपने कमरे में आई और उसे फोन लगाया "सब रास्ते साफ हैं, सब अपने काम में लगे है मैं चुपचाप घर से बाहर निलकुंगी उससे पहले फोन करके बता दूंगी।" "अच्छा तुमने गहने और पैसे ले लिए न।" "हां ले लिए  तुम बारबार गहनों और पैसों का क्यूँ पूछ रहे हो, मैंने कहा न ले लिए।" "अरे बाबू वो इसलिये की नया घर संसार बसाना है, नई जगह जाते ही काम थोड़े मिल जाएगा, तो हमें घर के रूटीन कामों के लिए पैसा तो चाहिए ही मेरा मोबाईल भी बहुत पुराना है मुझे नया मोबाइल भी लेना है और फिर मैं कोई न कोई नोकरी पकड़ लूंगा, जिससे हम आराम से जिंदगी गुजारेंगे,।" "सुनो एक बात पूछुं क्या तुम में इतनी हिम्मत नहीं कि मुझे कमा कर अपने पैसे से रख सको,खाना खिला सको। "ऐसी बात नहीं बाबु तुम बिन रहा नहीं जाता, और हम जाते ही मंदिर में शादी कर लेंगे ओर काम मिलेगा तो आराम से जिएंगे न।" "सुनो तुम एक काम करो, अभी भागने का प्लान कैंसल करते हैं, पहले तुम काम करो और इतना पैसा कमा कर इकट्ठे कर लो कि 2 महीने तक काम न भी मिले तो हमें भूखों मरने की नौबत न आये, जैसे ही तुम पैसा इकट्ठा कर लोगे हम भाग चलेंगे, तब तक इंतजार करो, दो महीने तक न कर पाए तो मुझे भूल जाना।" "अरे बेबी, बात तो सुनो, मेरी बात….।" लड़की ने फोन काट दिया वो अपने पिता के कमरे में झांक आई, वो अभी भी बहीखाता कर रहे थे। उसने दरवाजा खटखटाया, "क्या बात है लाडो, सोई नहीं तुम।" "पापा एक बात कहनी है।" "कहो लाडो।" "पापा जब तक बिट्टू की पढ़ाई पूरी न हो मैं नोकरी करना चाहती हूँ, मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी है घर में बेकार बैठने से क्या फायदा, घर में दो रुपये जुड़ेंगे ही।" उसकी बात सुनकर पापा ने लाडो के सर पर स्नेह से हाथ फिरा दिया पापा बेटी दोनों की आँखें नम थी 🌹

प्रस्तुति रवि के गुरुबक्षणी 

Thursday, October 7, 2021

पिता

❓ पता नहीं क्यों पिताजी हमेशा पिछड़ रहे हैं।
 1. माँ की तपस्या 9 महीने की होती है! पिताजी की तपस्या 25 साल तक होती हैं, दोनों बराबर हैं, मगर फिर भी पता नहीं क्यों पिताजी पिछड़ रहे हैं।
 2. माँ परिवार के लिए भुगतान किए बिना काम करती है, पिताजी भी अपना सारा वेतन परिवार के लिए ही खर्च करते हैं, उनके दोनों के प्रयास बराबर हैं, फिर भी पता नहीं क्यों पिताजी पिछड़ रहे हैं।
 3. माँ आपको जो चाहे पकाती है, पिताजी भी आप जो भी चाहते हैं, खरीद देते हैं, प्यार दोनों का बराबर है, लेकिन माँ का प्यार बेहतर है।  पता नहीं क्यों पिताजी पिछड़ रहे हैं।
 4. जब आप फोन पर बात करते हैं, तो आप पहले मॉम से बात करना चाहते हैं, अगर आपको कोई चोट लगी है, तो आप 'मॉम' का रोना रोते हैं।  आपको केवल पिताजी की याद होगी जब आपको उनकी आवश्यकता होगी, लेकिन पिताजी को कभी बुरा नहीं लगता कि आप उन्हें सदैव और हर बार याद नहीं करते?  जब पीढ़ियों के लिए बच्चों से प्यार प्राप्त करने की बात आती है, तो कोई यह नहीं जानता कि पिताजी क्यों पिछड़ रहे हैं।
 5. अलमारी बच्चों के लिए रंगीन कपड़ो व साड़ियों और कई कपड़ों से भरी होगी लेकिन पिताजी के कपड़े बहुत कम हैं, वह अपनी जरूरतों के बारे में परवाह नहीं करते हैं, फिर भी यह नहीं जानते कि पिताजी क्यों पिछड़ रहे हैं।
 6. माँ के पास सोने के कई गहने हैं, लेकिन पिताजी के पास केवल एक अंगूठी है जो उनकी शादी के दौरान दी गई थी।  फिर भी माँ को कम आभूषण की शिकायत हो सकती है और पिताजी को नहीं।  अभी भी नहीं पता कि पिताजी क्यों पिछड़ रहे हैं।
 7. परिवार की देखभाल करने के लिए पिताजी अपना सारा जीवन बहुत परिश्रम करते हैं, लेकिन जब मान्यता प्राप्त करने की बात आती है, तो पता नहीं क्यों वह हमेशा पीछे रह जाते है।
 8. माँ कहती है, हमें इस महीने कॉलेज ट्यूशन का भुगतान करने की आवश्यकता है, कृपया त्योहार के लिए मेरे लिए एक साड़ी न खरीदें, जबकि पिताजी ने अपने नए कपड़ों के बारे में तो कभी सोचा भी नहीं।  दोनों का प्यार बराबर है, फिर भी पता नहीं क्यों पिताजी पिछड़ रहे हैं।
 9. जब माता-पिता बूढ़े हो जाते हैं, तो बच्चे कहते हैं, माँ घर के कामों में कम से कम मदद करती हैं, लेकिन वे कहते हैं, पिताजी बेकार हैं। घर में फालतू पड़े रहते हैं।
 पिताजी पीछे हैं (बल्कि सबसे पीछे ’) क्योंकि वह परिवार की रीढ़ हैं।  उसकी वजह से हम अपने दम पर खड़े हो पा रहे हैं।  
शायद, यही कारण है कि वह पिछड़ रहै है .... !!! क्योंकि रीढ़ ही शरीर को साधे रहती है मगर वो सबसे पीछे होती है
🙏  🙏

Wednesday, October 6, 2021

जीवन का मूल्य

जीवन का मोल  ( बोधकथा )

एक दिन एक आदमी गुरु के पास गया और उनसे पूछा, 'बताइए गुरुजी, जीवन का मूल्य क्या है?'

गुरु ने उसे एक पत्थर दिया और कहा, 'जा और इस पत्थर का मूल्य पता करके आ, लेकिन ध्यान रखना पत्थर को बेचना नहीं है।'

वह आदमी पत्थर को बाजार में एक संतरे वाले के पास लेकर गया और संतरे वाले को दिखाया और बोला, 'बता इसकी कीमत क्या है?'

संतरे वाला चमकीले पत्थर को देखकर बोला, '12 संतरे ले जा और इसे मुझे दे जा।'

वह आदमी संतरे वाले से बोला, 'गुरु ने कहा है, इसे बेचना नहीं है।'

और आगे वह एक सब्जी वाले के पास गया और उसे पत्थर दिखाया। सब्जी वाले ने उस चमकीले पत्थर को देखा और कहा, 'एक बोरी आलू ले जा और इस पत्थर को मेरे पास छोड़ जा।'

उस आदमी ने कहा, 'मुझे इसे बेचना नहीं है, मेरे गुरु ने मना किया है।'

आगे एक सोना बेचने वाले सुनार के पास वह गया और उसे पत्थर दिखाया।

सुनार उस चमकीले पत्थर को देखकर बोला, '50 लाख में बेच दे'।

उसने मना कर दिया तो सुनार बोला, '2 करोड़ में दे दे या बता इसकी कीमत जो मांगेगा, वह दूंगा तुझे...।'

उस आदमी ने सुनार से कहा, 'मेरे गुरु ने इसे बेचने से मना किया है।'

आगे हीरे बेचने वाले एक जौहरी के पास वह गया और उसे पत्थर दिखाया।

जौहरी ने जब उस बेशकीमती रुबी को देखा तो पहले उसने रुबी के पास एक लाल कपड़ा बिछाया, फिर उस बेशकीमती रुबी की परिक्रमा लगाई, माथा टेका, फिर जौहरी बोला, 'कहां से लाया है ये बेशकीमती रुबी? सारी कायनात, सारी दुनिया को बेचकर भी इसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती। ये तो बेशकीमती है।'

वह आदमी हैरान-परेशान होकर सीधे गुरु के पास गया और अपनी आपबीती बताई और बोला, 'अब बताओ गुरुजी, मानवीय जीवन का मूल्य क्या है?'

गुरु बोले, 'तूने पहले पत्थर को संतरे वाले को दिखाया, उसने इसकी कीमत 12 संतरे बताई। आगे सब्जी वाले के पास गया, उसने इसकी कीमत 1 बोरी आलू बताई। आगे सुनार ने 2 करोड़ बताई और जौहरी ने इसे बेशकीमती बताया। अब ऐसे ही तेरा मानवीय मूल्य है। इसे तू 12 संतरे में बेच दे या 1 बोरी आलू में या 2 करोड़ में या फिर इसे बेशकीमती बना ले, ये तेरी सोच पर निर्भर है कि तू जीवन को किस नजर से देखता है।'

हमें कभी भी अपनी सोच का दायरा कम नहीं होने देना चाहिए।

🌹 रवि के गुरुबक्षणी 

स्वतंत्र लेखक पत्रकार 
गुरुबक्षणी निवास स्ट्रीट 5 
धर्मशाला के सामने रविग्राम तेलीबांधा रायपुर 492006 छग

Tuesday, October 5, 2021

नैतिकता में शास्त्री जी का कोई सानी नहीं था

बात उन दिनों की है जब लाल बहादुर शास्त्री जेल में थे. जेल से उन्होंने अपनी माता जी को पत्र लिखा कि 50 रुपये मिल रहे हैं या नहीं और घर का खर्च कैसे चल रहा है?
मां ने पत्र के जवाब में लिखा कि 50 रुपये महीने मिल जाते हैं. हम घर का खर्च 40 रुपये में ही चला लेते हैं. तब बाबू जी ने संस्था को पत्र लिखकर कहा कि आप हमारे घर प्रत्येक महीने 40 रुपये ही भेजें. बाकी के 10 रुपये दूसरे गरीब परिवार को दे दें.
जब यह बात पंडित जवाहर लाल नेहरू को पता चली तो वह शास्त्री जी से बोले कि त्याग करते हुए मैंने बहुत लोगों को देखा है, लेकिन आपका त्याग तो सबसे ऊपर है. इस पर शास्त्री जी पंडित जी को गले लगाकर बोले, ''जो त्याग आपने किया उसकी तुलना में यह कुछ भी नहीं है, क्योंकि मेरे पास तो कुछ है ही नहीं. त्याग तो आपने किया है जो सारी सुख सुविधा छोड़कर आजादी की जंग लड़ रहे हैं.'' क्या ऐसी सादगी और ऐसा त्याग आज संभव है?
आज भारतीय नेता बड़े-बड़े कांड होने पर भी कुर्सी का मोह नहीं छोड़ पाते हैं लेकिन शास्त्री जी एक ऐसे नेता थे जो किसी भी घटना पर अपराधबोध होने की सूरत में अपनी जिम्मेदारी लेने से नहीं हिचकते थे. बात 1952 की है जब उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया. उन्हें परिवहन और रेलमंत्री का कार्यभार सौंपा गया. 4 वर्ष पश्चात 1956 में अडियालूर रेल दुर्घटना के लिए, जिसमें कोई डेढ़ सौ से अधिक लोग मारे गए थे, अपने को नैतिक रूप से उत्तरदायी ठहरा कर उन्होंने रेलमंत्री का पद त्याग दिया. शास्त्रीजी के इस निर्णय का देशभर में स्वागत किया गया. आज के नेताओं को इससे बहुत बड़ी सीख लेने की जरूरत है.
~ साभार 
मां भारती के सच्चे सपूत श्रद्धेय लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर उनको शत शत नमन 🙏💐🇮🇳