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Saturday, January 22, 2022

श्रीचंद माखीजा

#old_doordarshan_serials 

श्रीचंद मखीजा / Shreechand makhija 
 

जयपुर शहर के जौहररी बाजार में खेलकर बड़े हुए श्रीचंद मखीजा बचपन के उन दिनों को आज भी नहीं भूलते जब उन्होंने अपने स्कूल में नाटक किए। सिंधी पंचायत स्कूल में जब वे छठी क्लास में पढ़ते थे, तब उन्होंने 'भक्त प्रह्लाद' और 'अंधेर नगरी चौपट राजा' नाटकों में अभिनय कर बेस्ट एक्टर का अवार्ड जीता। वे कहते हैं-'बस तभी से अभिनय का कीड़ा लग गया।' 

20 मार्च, 1940 को जन्मे श्रीचंद मखीजा का परिवार विभाजन से एक साल पहले 1946 में ही पाकिस्तान के शिकारपुर (सिंध) से जयपुर आकर बस गया था। जयपुर में सिंध पंचायत स्कूल और पोद्दार स्कूल में पढ़ाई के बाद उन्होंने कॉमर्स कॉलेज से स्नातक किया। कॉलेज में भी नाटकों का सिलसिला चलता रहा जो एजी ऑफिस में नौकरी लग जाने के बाद भी जारी रहा। श्रीचंद मखीजा का जब 1976 में मुंबई तबादला हुआ तो जैसे उन्हें सही मंजिल मिल गई और अभिनय का पूरा समुद्र उनके सामने खुल गया।

श्रीचंद मखीजा को असली पहचान मिली टीवी सीरियल 'नुक्कड़' से। कुंदन लाल शाह के इस सीरियल के पहले सत्र के सभी 40 एपिसोड में माखीजा ने चौरसिया पान वाले का रोल किया, जिसमें वे बिहारी भाषा में रोचक संवाद बोलते हैं। उस दौर में वे मुंबई की गलियों में निकल जाते तो लोग उन्हें 'चौरसिया पान वाला' कहकर आवाज लगाते थे। इस सीरियल से वे घर-घर में पहुंच गए।

इसके अलावा उन्होंने 'इंतजार', 'तमस', 'भारत एक खोज', 'मुजरिम हाजिर', 'हम पांच', 'सीआईडी' जैसे अनेक लोकप्रिय टीवी सीरियल्स में काम किया। 'नुक्कड़' के बाद 'नया नुक्कड़' के नाम से दूसरे सत्र के सीरियल में भी उन्होंने काम किया।

 खास बात यह कि श्रीचंद मखीजा 77 वर्ष की उम्र मे भी अभिनय के प्रति उनका प्रेम अद्भुत है। उनका अनुसार  'अभिनय में इन्हे स्वर्गिक आनंद मिलता 

चर्चित टीवी सीरियल 'नुक्कड़' में चौरसिया पान वाला बनने से पहले श्रीचंद मखीजा ने काफी तैयारी की थी। सीरियल के निर्देशक कुंदन लाल शाह ने उनसे कहा था-'आप तो सिंधी हैं। इसमें आपको बिहारी में संवाद बोलने पड़ेंगे। आप बोल लेंगे?' उन्होंने कहा-'हां, बोल लूंगा।'

 इसके बाद मखीजा जुहू में एक पान की दुकान पर जाते और पान वाले की बातचीत को ध्यान से सुनते। कई दिनों तक यह सिलसिला चला। इसके बाद संवाद अदायगी से उन्होंने दर्शकों का दिल जीत लिया।

सीरियल के एक दृश्य में बताया जाता है कि 'अमिताभ बच्चन' के 'खाइके पान बनारस वाला' गीत चर्चित होने के बाद चौरसिया पान वाला अपनी दुकान से 'राजेश खन्ना' की तस्वीर हटाकर अमिताभ बच्चन की लगा देता है। इससे मोहल्ले का खोपड़चंद नाराज होता है। तब मखीजा का ये संवाद काफी चर्चित हुआ था-'ई ले खोपड़चंद, हम तुम्हार राजेश खन्ना पर चूना लगाय दिए हैं और अफने अमिताभ की फोटो इहां अपनी दुकनिया पर लगाय दिए हैं। कर ले का करत है तू।' दरअसल, यह राजेश खन्ना की विदाई और अमिताभ बच्चन की एंट्री का दौर था.....💖💖💖💖

Friday, January 21, 2022

कानून फ़िल्म

ओल्ड एज गोल्ड...1960...कानून...बी आर चोपड़ा की एक न भूलने वाली फिल्म..जिसने आय के कई रिकॉर्ड धस्वत किये थे।
एक ऐसी फिल्म जिसमे कोई गाना नही था वरना इस दौर में 8 गाने होना जरूरी होता था गानों की चलते ही फिल्में हिट हुआ करती थी
बहरहाल फ़िल्म की कहानी सारांशतः ये थी एक सेठ का खून होता है उस खून में एक बेगुनाह चोर किंतु मरीज पकड़ा जाता है उसे फांसी होने ही वाली होती है कि एक राज खुलता है बेगुनाह चोर बच जाता है पर जो राज खुलता है उससे ये साबित होता है कि कानून को कैसे तोड़मडोकर वकील और जुर्री मेम्बर और जज ,गवाह अदालत में पेश करते है कानून से खेलना मामूली बात है। सन्देश यही था कोई गुनहगार बेकसूर भी हो सकता है कानून को हर पहलू को ध्यान में रखकर फैसला करना चाहिए।
3 घण्टे की इस सस्पेंस थिरलर को लिखा था सी जी पावरी ने और संवाद थे अख्तर उल ईमान के जो फ़िल्म की जान थे अकल्पनीय संवादों ने फ़िल्म के चार चांद लगा दिए थे
ये फ़िल्म 54 दिनों में बनकर रिलीज की गई थी।
ज़र्दस्त निर्देशन बी आर चोपड़ा का था जो कोई सोच भी नही सकता था आज 60 साल के बाद भी ये फ़िल्म ताजा है बार बार देखने लायक।
अशोक कुमार(डबल रोल) राजेंद्र कुमार, नन्दा, मेहमूद, नाना पलसीकर,शशिकला, ॐ प्रकाश, जगदीश राज, इत्यादि द्वारा अभिनीत फिल्म में सभी का काम बेमिसाल था पर बेगुनाह मरीज चोर की भूमिका में नाना पलसीकर ने अद्धभुत अभिनय किया था उनको बेस्ट एक्टर का अवार्ड मिला था
इस फ़िल्म को भी नेशनल अवार्ड के साथ बी आर चोपड़ा को बेस्ट निर्देशन का अवार्ड मिला था, इसी फिल्म के बाद राजेन्द्र कुमार को स्टारडम मिला और आगे चलकर खूब चमके।
फ़िल्म की खासियत सलिल चौधरी का बैकग्राउंड संगीत भी था इसी फिल्म के बाद ही बैकगॉउन्ड संगीत का महत्व बड़ा था।
ये फ़िल्म रायपुर की बाबूलाल टाकीज में 119 दिन, गोंदिया की प्रभात में 2 हफ्ते, नांगपुर की श्री टाकीज में 29 हफ्ते और मुम्बई की रिगल में 56 हफ्ते चली थी, बाद के सालों में अलग अलग टाकिजों में मेटनी लगी थी जब भी लगी भयानक भीड़ होती थी, ये फ़िल्म मैने 1977 में राजलक्ष्मी टाकीज गोंदिया देखी थी तब में कॉलेज के पहले साल में था कालेज से छुपकर दुपहर 12.30 बजे मेटनी में .80 पैसे सेकंड क्लास में देखी थी मनोरंजन का और कोई सस्ता साधन नही हुआ करता था।
कभी समय मिले तो ये फ़िल्म अवश्य देखे ताजगी का अहसास होगा पर एकांत में देखे क्योकि ये फ़िल्म आसानी से समझने में नही आएगी...चलूँ मित्रो---चाय की तलब लगी है इन दिनों में पूरी तरह घर मे ही हूँ पैर की चोट और असहनीय दर्द ने घूमने की इज्जाजत नही दी है---आपका::::लोकु मुक्ता
क्या आप जानते है--------- फ़िल्म कानून के सहायक निर्देशकों में सिन्धी निर्देशक ओ पी रल्हन भी थे जिसने बाद के सालों में गहरा दाग, फूल और पत्थर, तलाश, हलचल, पॉपी, प्यास जैसी हिट फिल्में दी थी और राजेंद्र कुमार उनके बहनोई थे।
कानून की नकल पर कई फिल्में बनी थी उनमें से एक थी 1983 में आई अंधा कानून।
मशहूर निर्देशक यश चोपड़ा बी आर चोपड़ा के सगे भाई थे और सहायक निर्देशक भी उन्होंने ही यश चोपड़ा को सही मायनों में निर्देशन के गुर सिखाए पर दुःखद पहलू ये हुआ यश चोपड़ा ने अलग होकर खुद की कम्पनी खोली जिसका सदमा बी आर चोपड़ा सह नहीं पाए थे आजीवन उनको यही गम होता रहा बावजूद इन्होंने धुन्ध, पति पत्नी और वो, इंसाफ का तराजु, दी बर्निंग ट्रैन, और महाभारत सीरियल में जबरदस्त सफलता पाई थी।
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Wednesday, January 19, 2022

सुचित्रा सेन को दी गई थी तोप की सलामी

सुचित्रा सेन जी अपनी तरह की इकलौती एक्ट्रेस थी। सुचित्रा सेन के बारे में कहा जाता है कि वो बहुत ही स्वाभिमानी एक्ट्रेस थीं। 'आंधी', 'देवदास' जैसी कालजयी फ़िल्मों के लिए सुचित्रा सेन जी को हमेशा याद किया जाएगा ।

सुचित्रा सेन बड़े से बड़े फिल्मकारों के साथ काम करने का प्रस्ताव ठुकराती रहीं। सुचित्रा ने राज कपूर की एक फ़िल्म में काम करने का प्रस्ताव इसलिए ठुकरा दिया था क्योंकि राज कपूर द्वारा झुककर फूल देने का तरीका उन्हें पसंद नहीं आया था। महान दिग्गज फिल्मकार सत्यजित राय उन्हें लेकर 'देवी चौधुरानी' बनाना चाहते थे, लेकिन सुचित्रा द्वारा इनकार करने के बाद उन्होंने यह फ़िल्म बनाने का विचार ही त्याग दिया!

उत्तम कुमार और सुचित्रा सेन की जोड़ी एक जमाने में बांग्ला सिनेमा की सबसे लुभावनी जोड़ी थी।

साल 1953 से 1978 के बीच सुचित्रा ने हिंदी और बंगला कुल मिला कर 61 फ़िल्में की। इनमें से 20 से ज्यादा फ़िल्में ब्लॉकबस्टर रहीं तो वहीं एक दर्जन से ज्यादा फ़िल्में सुपर हिट..

उनके अंतिम संस्कार के दौरान वेस्ट बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की उपस्तिथि में उन्हें तोप की सलामी दी गयी थी। गौरतलब है कि तोप की सलामी देना अपने देश में एक सम्मान का प्रतीक है!

प्रदीप

प़दिपकुमार.....! 
भले ही प़दिपकुमार  अशोककुमार या दिलीपकुमार जैसे नामी कलाकार न थे फिरभी प़दिपकुमार ने कई प़कारकी फिल्मों में काम कीया हे..! घोड़ेपे बैठकर हाथमें तलवार लेकर लडते योद्धा या  निराश  और निष्फल प़ेमी या  राजकुमार  राजा शहजादे के रोल में हमनें प़दिपकुमारको कई फिल्मों में देखा हे। 

प़दिपकुमार का जन्म वेस्ट बंगालमें तारिख 6 जनवरी 1925 को हूवाँ था। उनके पिताजी जज थे उनका  रेप्युटेड उच्च घराना था। घर में कडा अनुशासन था फिल्म देखने पर भी पाबंदी थी। प़दिपकुमार को नाटक और फिल्मों में काम कर ने की तीव्र इच्छा थी लेकिन पिताजी के डर के वजह से कहेने की हिम्मत नहीं थी। 

युवा प़दिपकुमार अभीनय का शौक दिल में ही दबा कर कलकत्ता की  great Easter hotel मे receptionist की नौकरी में रह गये वहाँ  250/ रुपये सेलरी मिलती थी। 

उस वक्त प़दिपकुमार बेहद खुबसूरत थे...घने  रंग का शूट उनका परमनंट ड़ेश था। छुप छुप कर नाटकों में काम किया करते थे तो नौकरीका टाइम एडजस्ट नहीं कर पाते और  बार बार नौकरी बदलनी पड़ती थी .. पिताजी गुस्से में रहते थे.... पर युवा प़दिपकुमार  ने ठान ली... घर भले ही छोड़ना पडे  पर फिल्मों में तो  जाना ही  हे...! 

आखिर पिता जी एक बात पर राजी हूवे.. प़दिप एक्टर के तौर पर नहीं....फिल्मों मे टेक्निशयन बने तो उसे कोई ऐतराज नही था! प़दिप ने मन मनाया.. चलो इस बहाने फिल्म studio मे तो प़वेश मिलेगा..! 

फिर युवा प़दिप कलकत्ता के अरोरा studio  मे apprenticeship  करने लगे..!  उस वक्त जाने माने  फिल्म  निर्देशक देवकी बोझ  प़दिपकुमार के घर के पास रहते थे। प़दिपकुमार एक नये नाटकका शो करने वाले थे। प़दिपकुमार ने देवकी बोझ को अपना नया नाटक  देखने को राजी कर लिया। देवकी बोझ नाटक देखने आये। नाटक देखकर देवकी बोझ राजी हूवे और उनहोंने प़दिपकुमारको अच्छे अभिनय के लिये अभिनंदन भी दिया और अपनी फिल्म में काम करने का ओफर भी कीया! प़दिपकुमार के पिताजी राजी तो नहीं थे फिर भी उनहोंने प़दिपकुमारको फिल्म में काम करने को अनुमति दे दी...! 

प़दिपकुमार की फिल्म केरीयर इस तरह शुरू हूइ। प़दिपकुमार की सबसे पहेली बंगाली फिल्म अलक नंदा थी जो सन 1945 मे रीलिज हूई और फलोप हो गई! प़दिपकुमार के पिता जी ने ताना मारा....चले थे फिल्मों में काम करने...! अब क्या पापड बेचोगे..! 

फिर 1946 में प़दिपकुमार को फिल्म भुलीनाइ मिली जो सफल रही और प़ेम का नशिब खुल गया.! 

1947 में प़दिपकुमार छबि नामकी लड़की से प़ेम कर बैठे। शादी की उम्र नहीं थी दोनोंकी जाति भी अलग थी फिर भी दोनों ने छूपके से शादी कर डाली और घर वालो से बात छूपा कर रखी..!

1948 की साल प़दिपकुमार के लिए सफल रही। उस समय के बड़े  फिल्म  निर्देशक हेमेन गुप्ता से परिचय हुआ। वह प़दिपकुमार को लेकर फिल्म बनाना चाहते थे तो प़दिपकुमार कलकत्ता छोड़ कर बंबई आये.. उसके बिच एक घटना बनी...! 

प़दिपकुमार के पिताजी बहुत बिमार हो गये  वह चाहते थे कि प़दिपकुमार  जल्दी से शादी कर ले!  प़दिपकुमार ने तो छबि से शादी करली थी पर पिता जी को बता न शके और इस तरह उसने पिता जी की पसन्द की लड़की से भी शादी करनी पडी.. इस तरह प़दिपकुमार दो  पत्नीओ के पति बने..!! 

प़दिपकुमार की पहेली हिन्दी फिल्म  आनंद मठ थी जो 1952 में आइ। फिल्म में प़िथवीराज कपुर भारत भूषण और गीता बाली भी थे। उसके बाद आइ अनारकली। फिल्म अनारकली के लीये अभीनेता शयाम  शममी कपुर के भी screen taste  लीये गयेे थे लेकिन  पसन्द प़दिपकुमार हूवे। फिल्म अनारकली   के संवाद उर्दू मिश्र हिन्दी में थे प़दिपकुमार को बंगाली  जबान आती थी लेकिन  उर्दू मिश्र हिन्दी बोलने में तकलीफ होती थी तो प़दिपकुमार के संवाद  संवाद लेखक  हमीद बट की आवाज में डब किये गये..! 

फिल्म अनारकली पूरी हूइ लेकिन एक और नयी आफत आ पडी! फिल्म को  कोई डीस्ट़बयुटर खरीद ने को तैयार न था! आखिर studio  के मालिक जालन ने हिम्मत करके खुद  फिल्म रीलिज की..  अनारकली ने उम्मीद से ज्यादा बिजनेस कीया फिल्म सफल हो गई!. 

अनारकली के बाद प़दिपकुमार के पास ओर कोई काम न था कयोंकि  वे contract  से अनुबंधित थे तो कीसी और निर्माता निर्देशक की फिल्म में काम नहीं कर शकते थे। 

आखिर हेमंत कुमार और एस. मूखरजी की मदद से उसे बहार की फिल्म में काम न कर शके एसी शर्त से मुक्ति मिली। सुबह का तारा फिल्म  से प़दिपकुमार फिर से चलने लगे..  बाद में  1954 मे वैजयन्ती माला के साथ नागीन। 1956 मे राज कपुर की जागते रहो। मधुबाला के साथ  राज हठ। गेटवे ओफ इंडिया। एक साल। जैसी फिल्में की। नरगिस के साथ  अदालत और  रात और दिन। मीना कुमारी के साथ आरती । चित्र लेखा।  भीगी रात। नूर जहाँ। बहू बेगम  जेसी फिल्मों में काम किया। घुंघट। संजोग। राखी। ताज महल। सहेली। मेरी सुरत तेरी आँखे। दुनिया ना माने। डीटेकटीव। अफसाना जेसी फिल्मों में  काम किया। धार्मिक फिल्म महाभारत में भी प़दिपकुमार थे।  अशोक कुमार के  साथ प़दिपकुमार ने कयीं फिल्मों में काम किया। 

कई फिल्म में हिरो का रोल अदा करने के  बाद  प़दिपकुमारने केरेक्टर रोल भी कीये। जैसे महेबुब की महेदी। चैताली  ।।संबध। कागज की नाव। सतरंज के महोरे बगैराह। बाद में तो उनहोंने होरर फिल्मोंमे और  बिलकुल  फालतू रोल भी किये। 

प़दिपकुमार को   बी। आर। चोपड़ा ने फिल्म कानून और बिमलरोय ने फिल्म सुजाता  में रोल ओफर कीये थे लेकिन प़दिपकुमार के सेक़ेटरी  एस। एम। सागर तारिखो का एडजस्टमेंट न कर शके बाद में येह रोल राजेन्द्र कुमार और सुनील दत्त ने किये! 

1956 मे प़दिपकुमार ने  फिल्म निर्माता बननेको सोचा लेकिन उसे फिल्म प़ोडकशन का कोई अनुभव न था  तो  बहुत सारे पैसे गुमाये! 

प़दिपकुमार अपनी जवानी में इतने खुबसूरत  थे कि शाही भुमिका में वे बेनमून लगते थे। उसके  सर पर ताज बहुत अच्छा लगता था। अपने समय में प़दिपकुमार सबसे ज्यादा  पैसा लेने वाले कलाकार थे। 

 एक ही साथ मधुबाला और माला सिहा से उनकी दोस्ती थी । सुना हे इसी कारण माला सिहा ने प़दिपकुमार के घर जाकर  गुस्से से   उसे थप्पड़ मारी थी  ! 

प़दिपकुमार जीस तरह की मूंछे रखतें थे उस प़कार की मूंछे रखने की   उस वक्त फेसन चली थी! प़दिपकुमार का जब दौर चल रहा था तब शूटिंग के दौरान एक आदमी छत्ती पकड कर और एक आदमी प़दिपकुमार का सीगरेट का डबबा  पकड़ कर खड़ा रहेता था! 

प़दिपकुमार की एक बेटी बीना ने भी फिल्मों में काम किया हे । गुलज़ार से शादी की उस से पहले राखी ने एक अजोय विस्वास  शादी की थी राखी ने उससे  divorce लीया  ... बीना ने उसी अजोय विस्वास से शादी की थी। 

प़दिपकुमार का तारीख 27 अकतूबर 2001 को 76 साल की आयु में कलकत्ता में देहात हो गया. ।।

Wednesday, January 5, 2022

शकीला

शकीला...! 

बिते हुए जमाने की खुबसूरत  अभीनेत्री. !

कई सदाबहार ओर मधुर  फिल्मी गाने परदे पर शकीला पर  फिल्माये गयें और मशहूर भी हुए...!. 

याद किजिए फिल्म आरपार का वह मशहूर गाना  बाबुजी धीरे चलना.. प्यार में  जरा शंभलना.. !!  गुरु दत्त की फिल्म आरपार  1954 के ईस गाने और फिल्म से ही शकीला को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में पहचान मिली थी. . 

1 जनवरी 1935 के रोज इस खुबसूरत अभीनेत्री का जन्म हुआ था.

 मेरी जानकारी के मुताबिक शकीला  फिल्म    दुनिया 1949 में सब से पहले फिल्म के परदे पर दिखाई दी.. . ईस फिल्म में  सुरैया  करण दिवान याकूब भी थे.. फिल्म के निदेशक थे एम. एफ. हुसैन..

फिल्म दास्तान 1950 में शकीला बाल कलाकार थी.. फिल्म के मुख्य कलाकार थे राज कपुर सुरैया और वीणा.. फिल्म के निदेशक ए. आर. कारदार थे.

इसके बाद शकीला गुमास्ता (1951.).. खुबसूरत  राजरानी दमयंती.. सलोनी. सिंदबाद द सेलर (1952)जैसी फालतू फिल्मों में भी दिखाई दी..  फिल्म आगोश 1953 में नासिर खान और नूतन के साथ शकीला भी थी. सोहराब मोदी की फिल्म झांसी की रानी  में भी शकीला दिखाई दी थी.

 सन 1953 की ही एक ओर फिल्म अरमान के मुख्य कलाकार देव आनंद और मधुबाला थे.. शकीला भी साथ में थी.. इस फिल्म का तलत महेमुद का गाया हुआ वह मशहूर गाना भरम  तेरी वफाओं का मीटा देते तो क्या होता.... आप को याद होगा.. !! 

निदेशक  जगदीश पंत की  फिल्म  मद मस्त 1953 में शकीला   पहली  बार हिरोइन बनी. . फिल्म के हिरो थे ए. ऐन. अंसारी..!! फिल्म में निरुपा रोय  शशिकला   और सप़ु भी थे. 

फिल्म राज महल 1953 में शकीला के हिरो त्रिलोक कपुर थे..  फिल्म शहनशाह 1953 में शकीला के हिरो आगा थे..!  फिल्म में कामिनी कौशल  रंजन  शशिकला के.एन.सिंग भी थे..

सन 1954 में आइ गुरु दत्त की फिल्म आरपार  से शकीला को पहेचान मिली.इस फिल्म में शकीला के साथ शयामा गुरु दत्त और जोनी वाकर भी थे.. फिल्म  हिट हुई थी.. बाबुजी धीरे चलना... गाना परदे पर शकीला पर फिल्माया गया था. 

उसके बाद शकीला  जाने अनजाने में स्टंट  फिल्मों की हिरोइन बन गई..! 

महिपाल के साथ अलीबाबा 40 चोर.. लालपरी.  मस्त कलंदर  रत्न मंजरी..हुश्न बानो..कारवां.  मलिका..खूल जा सिलसिला. रूप कुमारी. अलादीन लैला. चमक चांदनी..मायानगरी.. नाग पदमिनी. अल हिलाल  सिम सिम मर जीना..डोकटर जेड अबदुल्ला..बगदाद की रातें       जैसी  फिल्मों में काम किया.

.गुल बहार.. हल्ला गुल्ला.. खुशबू. . लैला.. नूर महल  शाही चोर जैसी  स्टंट फिल्मों के दौर में बीच में सन 1956 में राज खोखला दिग्दर्शीत फिल्म सी.आइ. डी.   आई.. 

 फिल्म  सी.आई. डी.में शकीला के साथ देव आनंद वहिदा रहेमान और जोनी वाकर भी थे.. 
देव आनंद शकीला और शिला वाज पर फिल्माया गया गाना लेके पहेला पहेला प्यार.. और आंखों ही आंखों में  ईशारा हो गया....कौन भुल शकता हे.. ! 

सन 1958 में शकीला और सुनिल दत्त की एक फिल्म आई थी.. पोस्ट बोक्ष नंबर ९९९..ईस फिल्म में हेमंत कुमार और लता मंगेशकर का गाया हुआ बेहद खुबसूरत गाना.. निंद न मुझको आये.. दिल मेरा गभराये.... शकीला और सुनिल दत्त पर फिल्माया गया था....!!! 

सन 1960 में आई फिल्म श्रीमान सत्य वादी में शकीलाके हिरो राज कपुर थे. 
सन 1962 की फिल्म नकली नवाब में शकीला के हिरो मनोज कुमार थे..

सन 1962 में शक्ति शामंत दिगदर्शित फिल्म चाईना टाउन में शकीला के हिरो शम्मीकपुर थे. याद किजिए.. मुंह फुलाए गुस्से में खडी शकीला को मनाने गिटार पकड़ कर डांस करते हुए शम्मीकपुर गाते हे... बार बार देखै.. हजार बार देखो के देखने की चीज हे हमारी दिलरुबा ताली हो.... ! 

 1962 में ही आइ एक और फिल्म टावर हाउस में शकीला के हिरो अजीत थे..! ईस  फिल्म में अजीत ने मुकेश की आवाज में शकीला के लिए गाया गाना   में खुश नशीब हु मुझको किसी का प्यार मिला..  याद किजिए...!!! 
 
सन 1963 की एक फिल्म कहीं प्यार ना हो जाये में शकीला के हिरो महेमुद थे! फिल्म  मुलज़िम 1963 के हिरो प़दिप कुमार थे... इस फिल्म का  मोहम्मद रफी का गाया हुआ एक मधुर गीत दिवाना कहे के आज मुझे फिर पुकारिये हाज़िर हु कोई तिरे नजर दिल पे मारीये.. आप सब को याद होगा...!! 

शकीला की  हिरोइन के तौर पर आखिरी फिल्म उस्तादों के उस्ताद 1964 थी फिल्म के हिरो प़दिप कुमार थे... ईस फिल्म का  महंमद रफी का गाया हुआ गाना सौ बार जनम लेंगे.. ए जाने वफ़ा फिर भी हम तुम ना जुदा होंगें... बहुत ही मशहूर गाना हे.. 
सुना  हे सन 1989 में आइ एक फिल्म हम  ईंतजार करेंगे में भी शकीला दिखाई दी थी.. कया इसकी कोई पुष्टि मिल शकती हे...??!! 

शकीला टिपिकल मुस्लिम चहरे वाली खुबसूरत अभीनेत्री थी. शकीला का चहरा रुआबदार और तीखे नाक नकशे वाला था. सति या सीता के रोल में नहीं चल शकता था...!  शकीला का चहरा कातिलाना था.. मुजे शकीला की खुबसूरत नाक बहुत ही पसंद थी  ( यह पसंद मेरी परसनल हे  !! ) 

शकीला ने 72 फिल्मों में काम किया हे.. 

शकीला ने कोई जोनी बारबर से शादी की थी और सन 1963  में ही फिल्मों को अलविदा कहे कर पति के साथ युनाइटेड किंगडम चली गई थी.. शकीला को मीनाज नाम की एक बेटी भी थी.. शकीला बाद में ब्रिटेन से वापस भारत लौटी थी और बंबई में मरिन डा़ईव पर रहेती थी.. सन 1991 में उनकी बेटी मीनाज ने आत्महत्या कर ली थी.. बाद में शकीला  बांद्रा में रहेती थी.. 

रिश्ते में शकीला फिल्म कोमेडियन जोनी वाकर की साली लगती थी. जोनी वाकर की बीवी नूरजहाँ यानि नूर ने गुरु दत्त की एक फिल्म  आरपार 1954 में मुहोब्बत करलो जी भरलो   अजी किसने देखा हे.... गाना  परदे पर जोनी वाकर के साथ गाया था.. शकीला की एक और भी बहेन हे जिसका नाम याद नहीं आ रहा..! 

आखिरी दिनों में शकीला वृधावस्था में कीडनी डायबिटीज और  हार्ट की बिमारियों से त्रस्त हो गये थे.  20 सप्टंबर 2017 के रोज शकीला का देहांत हो गया..! ;

Tuesday, January 4, 2022

नीरज जी

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई !
पांव जब तलक उठें कि ज़िंदगी फिसल गई !!
पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई !
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई !!
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गोपालदास सक्सेना 'नीरज' जिन्हें हिंदी साहित्य का सजीव महाकाव्य कहा जाए तो ग़लत न होगा, रचना-संग्रह , ग़ज़लें,हाइकु, गीत-कविताएं, मुक्तक, बाल-कविताएं और फ़िल्मी-गीत सब में उन्हें महारत हासिल थी।

नीरज जी का जन्म ४ जनवरी १९२५ को इटावा जिले के ब्लॉक महेवा के निकट पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहाँ हुआ था। मात्र 6 वर्ष की आयु में पिता गुजर गये। १९४२में एटा से हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। लम्बी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहाँ से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डी०ए०वी कॉलेज में क्लर्की की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया। नौकरी करने के साथ पढ़ाई जारी रखी और हिन्दी साहित्य से एम०ए० किया। मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।

उनकी प्रमुख रचनाएं ।
संघर्ष (१९४४) अन्तर्ध्वनि (१९४६) विभावरी (1१९४८) प्राणगीत (1१९५१) दर्द दिया है (१९५६) बादर बरस गयो (१९५७) मुक्तकी,दो गीत ,नीरज की पाती (१९५८) गीत भी अगीत भी (१९५९) आसावरी, नदी किनारे, लहर पुकारे (१९६३) कारवाँ गुजर गया (१९६४) फिर दीप जलेगा (१९७०) तुम्हारे लिये (१९७२) नीरज की गीतिकाएँ (१९८७)

कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज जी को बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में 'नई उमर की नई फसल' के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा।

यूँ तो 'नीरज' जी ने फिल्मों में तमाम गीत लिखे, उनमें से कुछ गीत हैं।

फ़िल्म 'शर्मीली' "आज मदहोश हुआ जाये रे मेरा मन..मेरा मन" 
फ़िल्म 'गैंबलर' "दिल आज शायर है गम आज नगमा है"
फिल्म 'शर्मीली' "खिलते हैं गुल यहां..मिलके बिखरने"
फिल्म 'मेरा नाम जोकर' "ऐ भाई जरा देख के चलो, आगे ही नहीं पीछे भी"
फिल्म 'चंदा और बिजली' "काल का पहिया घूमे भैया"
फिल्म 'कन्यादान' "लिखे जो खत तुझे"
फिल्म 'नई उमर नई फसल' "कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे" नीरज की कालजयी गीतों में शुमार की जाती है।
फिल्म 'प्रेम पुजारी' "फूलों के कलम से, दिल की कलम से"
फिल्म 'प्रेम पुजारी' "रंगीला रे तेरे रंग में"
फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' "शोखियों में घोला जाए फूलों का शवाब"

किन्तु बम्बई की ज़िन्दगी से भी उनका मन बहुत जल्द उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये।

साहित्य और फिल्मों में गीत लेखन के लिए उन्हें तमाम पुरुस्कारों से नवाज़ा गया।
विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार , पद्म श्री सम्मान , यश भारती, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ , पद्म भूषण सम्मान , फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये सत्तर के दशक में लगातार तीन बार फ़िल्मफ़ेअर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार ने नीरज जी को भाषा संस्थान का अध्यक्ष नामित कर कैबिनेट मन्त्री का दर्जा भी दिया था।

इस महान साहित्यकार ने १९ जुलाई २०१८ को हम सब विदा ले लिया।

इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में !
लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में !!
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर !
ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में !!

जबक

Zabak زبک : तेरी दुनिया से दूर चले होकर मजबूर

ज़बक زبک एक हिंदी/उर्दू एक्शन ड्रामा फ़िल्म है, जो भारतीय सिनेमा में 1 जनवरी 1961 को रिलीज हुयी थी। और इस फिल्म का निर्माण और निर्देशन होमी वाडिया ने अपने वाडिया प्रोडक्शंस के बैनर तले किया था।

सी एल कैविश द्वारा लिखित कहानी के जरिये निर्देशक ने समाज की बहुत पुरानी गरीब और अमीरी की दशा को दिखाने का प्रयास किया है , कि किस तरह से एक गरीब लड़का एक अमीर राजकुमार के प्रेम में पड़कर अपने खुशहाल परिवार को खो देता है।

इस फिल्म की सफलता के बाद इसको तमिल भाषा में अरबु नट्टू अज़गी नाम से बनाया गया और दक्षिण भारतीय सिनेमा में भी इस फिल्म में सफल फिल्मों में अपना नाम दर्ज़ करवाया।

●Songs & Cast
इस फिल्म में संगीत चित्रगुप्त श्रीवास्तव ने दिया है और गीतों के बोल लिखे हैं प्रेम धवन ने – “तुझको मैं जान गई”, “तेरी दुनिया से दूर चले होकर मजबूर” , “शमा जले अरमानों की”, “मुझे मुबारक पुरानी यादें”, “तेरी तकदीर का सितारा”, “महलों ने छिन लिया बचपन का प्यार मेरा”, “जाने कैसा छाने लगा नशा” . इसके सभी गाने पसंद किये गए मगर “तेरी दुनिया से दूर चले होकर मजबूर” लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाया गया ये गण उस समय में जनता द्वारा बेहद पसंद किया गया। बाकी के गायकों में गीता दत्त, बलबीर, महेंद्र कपूर और मुकेश।फिल्म में क्लासिक सिनेमा के सुपरस्टार महिपाल ने मुख्य किरदार हाज़ी और ज़बक का अभिनय किया है और उनके साथ राजकुमारी ज़ैनब के किरदार में अभिनेत्री श्यामा दिखी हैं। बाकी के कलाकारों में मनहर देसाई, बी. एम. व्यास, उमा दत्त, अचला सचदेव , साहिरा,कृष्णा कुमारी, बाबू राजे और सरदार मंसूर ने भी इस फिल्म में वो अभिनय किया है जिसकी प्रशंसा आज भी की जाती है।

इस फिल्म में संगीत चित्रगुप्त श्रीवास्तव ने दिया है और गीतों के बोल लिखे हैं प्रेम धवन ने – “तुझको मैं जान गई”, “तेरी दुनिया से दूर चले होकर मजबूर” , “शमा जले अरमानों की”, “मुझे मुबारक पुरानी यादें”, “तेरी तकदीर का सितारा”, “महलों ने छिन लिया बचपन का प्यार मेरा”, “जाने कैसा छाने लगा नशा” . इसके सभी गाने पसंद किये गए मगर “तेरी दुनिया से दूर चले होकर मजबूर” लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाया गया ये गण उस समय में जनता द्वारा बेहद पसंद किया गया। बाकी के गायकों में गीता दत्त, बलबीर, महेंद्र कपूर और मुकेश।

फिल्म में क्लासिक सिनेमा के सुपरस्टार महिपाल ने मुख्य किरदार हाज़ी और ज़बाक का अभिनय किया है और उनके साथ राजकुमारी ज़ैनब के किरदार में अभिनेत्री श्यामा दिखी हैं। बाकी के कलाकारों में मनहर देसाई, बी. एम. व्यास, उमा दत्त, अचला सचदेव , साहिरा,कृष्णा कुमारी, बाबू राजे और सरदार मंसूर ने भी इस फिल्म में वो अभिनय किया है जिसकी प्रशंसा आज भी की जाती है।

●Interesting Facts
ज़बाक एक एक्शन हिंदी ड्रामा फिल्म थी जो पूरी दुनिया में 4 भाषाओँ में रिलीज़ हुयी हिंदी , उर्दू, पारसी और तुर्किश।
जहाँ यह फिल्म भारत में 1 जनवरी 1962 को रिलीज़ हुयी वही पर यह ईरान में 15 मई 1962 में रिलीज़ हुयी।

साभार ~ भूले बिसरे नगमे

Sunday, January 2, 2022

जबक

Zabak زبک : तेरी दुनिया से दूर चले होकर मजबूर

ज़बक زبک एक हिंदी/उर्दू एक्शन ड्रामा फ़िल्म है, जो भारतीय सिनेमा में 1 जनवरी 1961 को रिलीज हुयी थी। और इस फिल्म का निर्माण और निर्देशन होमी वाडिया ने अपने वाडिया प्रोडक्शंस के बैनर तले किया था।

सी एल कैविश द्वारा लिखित कहानी के जरिये निर्देशक ने समाज की बहुत पुरानी गरीब और अमीरी की दशा को दिखाने का प्रयास किया है , कि किस तरह से एक गरीब लड़का एक अमीर राजकुमार के प्रेम में पड़कर अपने खुशहाल परिवार को खो देता है।

इस फिल्म की सफलता के बाद इसको तमिल भाषा में अरबु नट्टू अज़गी नाम से बनाया गया और दक्षिण भारतीय सिनेमा में भी इस फिल्म में सफल फिल्मों में अपना नाम दर्ज़ करवाया।

●Songs & Cast
इस फिल्म में संगीत चित्रगुप्त श्रीवास्तव ने दिया है और गीतों के बोल लिखे हैं प्रेम धवन ने – “तुझको मैं जान गई”, “तेरी दुनिया से दूर चले होकर मजबूर” , “शमा जले अरमानों की”, “मुझे मुबारक पुरानी यादें”, “तेरी तकदीर का सितारा”, “महलों ने छिन लिया बचपन का प्यार मेरा”, “जाने कैसा छाने लगा नशा” . इसके सभी गाने पसंद किये गए मगर “तेरी दुनिया से दूर चले होकर मजबूर” लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाया गया ये गण उस समय में जनता द्वारा बेहद पसंद किया गया। बाकी के गायकों में गीता दत्त, बलबीर, महेंद्र कपूर और मुकेश।फिल्म में क्लासिक सिनेमा के सुपरस्टार महिपाल ने मुख्य किरदार हाज़ी और ज़बक का अभिनय किया है और उनके साथ राजकुमारी ज़ैनब के किरदार में अभिनेत्री श्यामा दिखी हैं। बाकी के कलाकारों में मनहर देसाई, बी. एम. व्यास, उमा दत्त, अचला सचदेव , साहिरा,कृष्णा कुमारी, बाबू राजे और सरदार मंसूर ने भी इस फिल्म में वो अभिनय किया है जिसकी प्रशंसा आज भी की जाती है।

इस फिल्म में संगीत चित्रगुप्त श्रीवास्तव ने दिया है और गीतों के बोल लिखे हैं प्रेम धवन ने – “तुझको मैं जान गई”, “तेरी दुनिया से दूर चले होकर मजबूर” , “शमा जले अरमानों की”, “मुझे मुबारक पुरानी यादें”, “तेरी तकदीर का सितारा”, “महलों ने छिन लिया बचपन का प्यार मेरा”, “जाने कैसा छाने लगा नशा” . इसके सभी गाने पसंद किये गए मगर “तेरी दुनिया से दूर चले होकर मजबूर” लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाया गया ये गण उस समय में जनता द्वारा बेहद पसंद किया गया। बाकी के गायकों में गीता दत्त, बलबीर, महेंद्र कपूर और मुकेश।

फिल्म में क्लासिक सिनेमा के सुपरस्टार महिपाल ने मुख्य किरदार हाज़ी और ज़बाक का अभिनय किया है और उनके साथ राजकुमारी ज़ैनब के किरदार में अभिनेत्री श्यामा दिखी हैं। बाकी के कलाकारों में मनहर देसाई, बी. एम. व्यास, उमा दत्त, अचला सचदेव , साहिरा,कृष्णा कुमारी, बाबू राजे और सरदार मंसूर ने भी इस फिल्म में वो अभिनय किया है जिसकी प्रशंसा आज भी की जाती है।

●Interesting Facts
ज़बाक एक एक्शन हिंदी ड्रामा फिल्म थी जो पूरी दुनिया में 4 भाषाओँ में रिलीज़ हुयी हिंदी , उर्दू, पारसी और तुर्किश।
जहाँ यह फिल्म भारत में 1 जनवरी 1962 को रिलीज़ हुयी वही पर यह ईरान में 15 मई 1962 में रिलीज़ हुयी।

साभार ~ भूले बिसरे नगमे

गौरी गुरुदत्त की अधूरी फ़िल्म

गुरु दत्त ने एक समृद्ध विरासत छोड़ी, जिसमें सीआईडी, मिस्टर एंड मिसेज 55, प्यासा और कागज के फूल शामिल हैं।  लेकिन कई अन्य फिल्मों की घोषणा की गई थी, जिन्हें स्टूडियो के फर्श पर रखा गया और छोड़ दिया गया।  अगर गुरुदत्त की फिल्मोग्राफी पूरी हो गई होती तो उनकी फिल्मोग्राफी कैसी दिखती?

 इन रुकी हुई परियोजनाओं में से एक थी गौरी, जिसे 1957 में लॉन्च किया गया था। गुरु दत्त फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड ने उस वर्ष प्यासा की सफलता से ताजा होकर बंगाली और अंग्रेजी में एक फिल्म की घोषणा की।  गौरी को गुरु दत्त द्वारा निर्देशित किया जाना था और उनकी पत्नी, पार्श्व गायिका गीता दत्त के अभिनय की शुरुआत के रूप में बिल किया गया था।

 गौरी निर्देशक के पसंदीदा शहर कोलकाता में स्थित है।  कथानक दुर्गा मूर्तियों के एक सफल मूर्तिकार के इर्द-गिर्द घूमता है, जो एक वेश्या से मिलता है, जो उसके लिए देवी से मिलती जुलती है।  महिला की दुर्दशा से आहत होकर उसने उससे शादी कर ली।  वे एक आनंदमय जीवन जीते हैं जब तक कि उसका कोई मित्र उसे ब्लैकमेल करना शुरू नहीं कर देता।  जब उसके माता-पिता को अपनी बहू के अतीत के बारे में पता चलता है, तो वे उसके साथ दुर्व्यवहार करने लगते हैं।  महिला भाग जाती है।

 मूर्तिकार उसे बेताबी से ढूंढता है लेकिन उसे ढूंढ नहीं पाता और अपना दिमाग खो देता है।  जब भी वह कोई मूर्ति बनाता है तो उसका चेहरा उसे सताता है।  एक दिन, कई साल बाद, वह गंगा में मूर्तियों के विसर्जन के जुलूस में शामिल होता है।  उन्होंने देखा कि एक शव को श्मशान घाट ले जाया जा रहा है।  यह उसकी पत्नी थी 

 दो दृश्यों को फिल्माया गया था और संगीत निर्देशक एसडी बर्मन ने दो गाने रिकॉर्ड किए थे जब गुरु दत्त ने उत्पादन बंद कर दिया था, गौरी बनाई गई थी, यह दो साल बाद उनकी कागज़ के फूल के बजाय सिनेमास्कोप प्रारूप में भारत की पहली फिल्म होगी।

 गौरी गुरुदत्त की कई अधूरी परियोजनाओं में से एक थी।  नसरीन मुन्नी कबीर ने अपनी जीवनी गुरु दत्त: ए लाइफ इन सिनेमा में सुझाव दिया है कि यह "एक तेजी से मोहभंग और मन की खंडित अवस्था" का संकेत देता है।  कबीर लिखते हैं, "गुरु दत्त का निजी जीवन उथल-पुथल में था, और उन्होंने धूम्रपान किया और जमकर शराब पी।"  यह गीतकार कैफ़ी आज़मी द्वारा वहन किया गया है, जिन्होंने 1959 के कागज़ के फूल के लिए गीत लिखे थे।  आज़मी को जीवनी में यह कहते हुए उद्धृत किया गया है, "वह फिल्म [कागज़ के फूल] में क्या कहना चाहते थे, यह स्पष्ट नहीं था।  उसका मानसिक.  उसकी मानसिक स्थिति ऐसी थी, वह स्पष्ट नहीं था... पूरी फिल्म में बने रहने की तुलना में अधिक दृश्यों को संपादित किया गया था।"

 जब कागज के फूल चल रहे थे, तब गुरु दत्त ने अपने सहायक निरंजन को एक और प्रोजेक्ट पर सेट कर दिया।  इच्छित फिल्म, राज़, विल्की कॉलिन्स की क्लासिक कहानी द वूमन इन व्हाइट से रूपांतरित की गई थी।  फिल्म में सुनील दत्त ने एक आर्मी डॉक्टर की भूमिका निभाई और वहीदा रहमान ने जुड़वां बच्चों की दोहरी भूमिका निभाई।

 राज़ फिट बैठता है और शुरू होता है, और गुरु दत्त ने अंततः सुनील दत्त की जगह ली।  कुछ दृश्य शिमला में शूट किए गए थे और दो गाने संगीतकार आरडी बर्मन द्वारा रिकॉर्ड किए गए थे, जो अपनी शुरुआत कर रहे थे।  एक ट्रैक में तीन डांसिंग गर्ल्स थीं और इसे गीता दत्त, आशा भोंसले और शमशाद बेगम ने गाया था।  लेकिन पांच या छह रीलों की शूटिंग और संपादन के बाद, गुरु दत्त ने फिल्म को आकार देने के तरीके से नाखुश होने के कारण इसे स्थगित कर दिया।