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Tuesday, October 5, 2021

नैतिकता में शास्त्री जी का कोई सानी नहीं था

बात उन दिनों की है जब लाल बहादुर शास्त्री जेल में थे. जेल से उन्होंने अपनी माता जी को पत्र लिखा कि 50 रुपये मिल रहे हैं या नहीं और घर का खर्च कैसे चल रहा है?
मां ने पत्र के जवाब में लिखा कि 50 रुपये महीने मिल जाते हैं. हम घर का खर्च 40 रुपये में ही चला लेते हैं. तब बाबू जी ने संस्था को पत्र लिखकर कहा कि आप हमारे घर प्रत्येक महीने 40 रुपये ही भेजें. बाकी के 10 रुपये दूसरे गरीब परिवार को दे दें.
जब यह बात पंडित जवाहर लाल नेहरू को पता चली तो वह शास्त्री जी से बोले कि त्याग करते हुए मैंने बहुत लोगों को देखा है, लेकिन आपका त्याग तो सबसे ऊपर है. इस पर शास्त्री जी पंडित जी को गले लगाकर बोले, ''जो त्याग आपने किया उसकी तुलना में यह कुछ भी नहीं है, क्योंकि मेरे पास तो कुछ है ही नहीं. त्याग तो आपने किया है जो सारी सुख सुविधा छोड़कर आजादी की जंग लड़ रहे हैं.'' क्या ऐसी सादगी और ऐसा त्याग आज संभव है?
आज भारतीय नेता बड़े-बड़े कांड होने पर भी कुर्सी का मोह नहीं छोड़ पाते हैं लेकिन शास्त्री जी एक ऐसे नेता थे जो किसी भी घटना पर अपराधबोध होने की सूरत में अपनी जिम्मेदारी लेने से नहीं हिचकते थे. बात 1952 की है जब उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया. उन्हें परिवहन और रेलमंत्री का कार्यभार सौंपा गया. 4 वर्ष पश्चात 1956 में अडियालूर रेल दुर्घटना के लिए, जिसमें कोई डेढ़ सौ से अधिक लोग मारे गए थे, अपने को नैतिक रूप से उत्तरदायी ठहरा कर उन्होंने रेलमंत्री का पद त्याग दिया. शास्त्रीजी के इस निर्णय का देशभर में स्वागत किया गया. आज के नेताओं को इससे बहुत बड़ी सीख लेने की जरूरत है.
~ साभार 
मां भारती के सच्चे सपूत श्रद्धेय लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर उनको शत शत नमन 🙏💐🇮🇳

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