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Friday, January 21, 2022

कानून फ़िल्म

ओल्ड एज गोल्ड...1960...कानून...बी आर चोपड़ा की एक न भूलने वाली फिल्म..जिसने आय के कई रिकॉर्ड धस्वत किये थे।
एक ऐसी फिल्म जिसमे कोई गाना नही था वरना इस दौर में 8 गाने होना जरूरी होता था गानों की चलते ही फिल्में हिट हुआ करती थी
बहरहाल फ़िल्म की कहानी सारांशतः ये थी एक सेठ का खून होता है उस खून में एक बेगुनाह चोर किंतु मरीज पकड़ा जाता है उसे फांसी होने ही वाली होती है कि एक राज खुलता है बेगुनाह चोर बच जाता है पर जो राज खुलता है उससे ये साबित होता है कि कानून को कैसे तोड़मडोकर वकील और जुर्री मेम्बर और जज ,गवाह अदालत में पेश करते है कानून से खेलना मामूली बात है। सन्देश यही था कोई गुनहगार बेकसूर भी हो सकता है कानून को हर पहलू को ध्यान में रखकर फैसला करना चाहिए।
3 घण्टे की इस सस्पेंस थिरलर को लिखा था सी जी पावरी ने और संवाद थे अख्तर उल ईमान के जो फ़िल्म की जान थे अकल्पनीय संवादों ने फ़िल्म के चार चांद लगा दिए थे
ये फ़िल्म 54 दिनों में बनकर रिलीज की गई थी।
ज़र्दस्त निर्देशन बी आर चोपड़ा का था जो कोई सोच भी नही सकता था आज 60 साल के बाद भी ये फ़िल्म ताजा है बार बार देखने लायक।
अशोक कुमार(डबल रोल) राजेंद्र कुमार, नन्दा, मेहमूद, नाना पलसीकर,शशिकला, ॐ प्रकाश, जगदीश राज, इत्यादि द्वारा अभिनीत फिल्म में सभी का काम बेमिसाल था पर बेगुनाह मरीज चोर की भूमिका में नाना पलसीकर ने अद्धभुत अभिनय किया था उनको बेस्ट एक्टर का अवार्ड मिला था
इस फ़िल्म को भी नेशनल अवार्ड के साथ बी आर चोपड़ा को बेस्ट निर्देशन का अवार्ड मिला था, इसी फिल्म के बाद राजेन्द्र कुमार को स्टारडम मिला और आगे चलकर खूब चमके।
फ़िल्म की खासियत सलिल चौधरी का बैकग्राउंड संगीत भी था इसी फिल्म के बाद ही बैकगॉउन्ड संगीत का महत्व बड़ा था।
ये फ़िल्म रायपुर की बाबूलाल टाकीज में 119 दिन, गोंदिया की प्रभात में 2 हफ्ते, नांगपुर की श्री टाकीज में 29 हफ्ते और मुम्बई की रिगल में 56 हफ्ते चली थी, बाद के सालों में अलग अलग टाकिजों में मेटनी लगी थी जब भी लगी भयानक भीड़ होती थी, ये फ़िल्म मैने 1977 में राजलक्ष्मी टाकीज गोंदिया देखी थी तब में कॉलेज के पहले साल में था कालेज से छुपकर दुपहर 12.30 बजे मेटनी में .80 पैसे सेकंड क्लास में देखी थी मनोरंजन का और कोई सस्ता साधन नही हुआ करता था।
कभी समय मिले तो ये फ़िल्म अवश्य देखे ताजगी का अहसास होगा पर एकांत में देखे क्योकि ये फ़िल्म आसानी से समझने में नही आएगी...चलूँ मित्रो---चाय की तलब लगी है इन दिनों में पूरी तरह घर मे ही हूँ पैर की चोट और असहनीय दर्द ने घूमने की इज्जाजत नही दी है---आपका::::लोकु मुक्ता
क्या आप जानते है--------- फ़िल्म कानून के सहायक निर्देशकों में सिन्धी निर्देशक ओ पी रल्हन भी थे जिसने बाद के सालों में गहरा दाग, फूल और पत्थर, तलाश, हलचल, पॉपी, प्यास जैसी हिट फिल्में दी थी और राजेंद्र कुमार उनके बहनोई थे।
कानून की नकल पर कई फिल्में बनी थी उनमें से एक थी 1983 में आई अंधा कानून।
मशहूर निर्देशक यश चोपड़ा बी आर चोपड़ा के सगे भाई थे और सहायक निर्देशक भी उन्होंने ही यश चोपड़ा को सही मायनों में निर्देशन के गुर सिखाए पर दुःखद पहलू ये हुआ यश चोपड़ा ने अलग होकर खुद की कम्पनी खोली जिसका सदमा बी आर चोपड़ा सह नहीं पाए थे आजीवन उनको यही गम होता रहा बावजूद इन्होंने धुन्ध, पति पत्नी और वो, इंसाफ का तराजु, दी बर्निंग ट्रैन, और महाभारत सीरियल में जबरदस्त सफलता पाई थी।
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