प़दिपकुमार.....!
भले ही प़दिपकुमार अशोककुमार या दिलीपकुमार जैसे नामी कलाकार न थे फिरभी प़दिपकुमार ने कई प़कारकी फिल्मों में काम कीया हे..! घोड़ेपे बैठकर हाथमें तलवार लेकर लडते योद्धा या निराश और निष्फल प़ेमी या राजकुमार राजा शहजादे के रोल में हमनें प़दिपकुमारको कई फिल्मों में देखा हे।
प़दिपकुमार का जन्म वेस्ट बंगालमें तारिख 6 जनवरी 1925 को हूवाँ था। उनके पिताजी जज थे उनका रेप्युटेड उच्च घराना था। घर में कडा अनुशासन था फिल्म देखने पर भी पाबंदी थी। प़दिपकुमार को नाटक और फिल्मों में काम कर ने की तीव्र इच्छा थी लेकिन पिताजी के डर के वजह से कहेने की हिम्मत नहीं थी।
युवा प़दिपकुमार अभीनय का शौक दिल में ही दबा कर कलकत्ता की great Easter hotel मे receptionist की नौकरी में रह गये वहाँ 250/ रुपये सेलरी मिलती थी।
उस वक्त प़दिपकुमार बेहद खुबसूरत थे...घने रंग का शूट उनका परमनंट ड़ेश था। छुप छुप कर नाटकों में काम किया करते थे तो नौकरीका टाइम एडजस्ट नहीं कर पाते और बार बार नौकरी बदलनी पड़ती थी .. पिताजी गुस्से में रहते थे.... पर युवा प़दिपकुमार ने ठान ली... घर भले ही छोड़ना पडे पर फिल्मों में तो जाना ही हे...!
आखिर पिता जी एक बात पर राजी हूवे.. प़दिप एक्टर के तौर पर नहीं....फिल्मों मे टेक्निशयन बने तो उसे कोई ऐतराज नही था! प़दिप ने मन मनाया.. चलो इस बहाने फिल्म studio मे तो प़वेश मिलेगा..!
फिर युवा प़दिप कलकत्ता के अरोरा studio मे apprenticeship करने लगे..! उस वक्त जाने माने फिल्म निर्देशक देवकी बोझ प़दिपकुमार के घर के पास रहते थे। प़दिपकुमार एक नये नाटकका शो करने वाले थे। प़दिपकुमार ने देवकी बोझ को अपना नया नाटक देखने को राजी कर लिया। देवकी बोझ नाटक देखने आये। नाटक देखकर देवकी बोझ राजी हूवे और उनहोंने प़दिपकुमारको अच्छे अभिनय के लिये अभिनंदन भी दिया और अपनी फिल्म में काम करने का ओफर भी कीया! प़दिपकुमार के पिताजी राजी तो नहीं थे फिर भी उनहोंने प़दिपकुमारको फिल्म में काम करने को अनुमति दे दी...!
प़दिपकुमार की फिल्म केरीयर इस तरह शुरू हूइ। प़दिपकुमार की सबसे पहेली बंगाली फिल्म अलक नंदा थी जो सन 1945 मे रीलिज हूई और फलोप हो गई! प़दिपकुमार के पिता जी ने ताना मारा....चले थे फिल्मों में काम करने...! अब क्या पापड बेचोगे..!
फिर 1946 में प़दिपकुमार को फिल्म भुलीनाइ मिली जो सफल रही और प़ेम का नशिब खुल गया.!
1947 में प़दिपकुमार छबि नामकी लड़की से प़ेम कर बैठे। शादी की उम्र नहीं थी दोनोंकी जाति भी अलग थी फिर भी दोनों ने छूपके से शादी कर डाली और घर वालो से बात छूपा कर रखी..!
1948 की साल प़दिपकुमार के लिए सफल रही। उस समय के बड़े फिल्म निर्देशक हेमेन गुप्ता से परिचय हुआ। वह प़दिपकुमार को लेकर फिल्म बनाना चाहते थे तो प़दिपकुमार कलकत्ता छोड़ कर बंबई आये.. उसके बिच एक घटना बनी...!
प़दिपकुमार के पिताजी बहुत बिमार हो गये वह चाहते थे कि प़दिपकुमार जल्दी से शादी कर ले! प़दिपकुमार ने तो छबि से शादी करली थी पर पिता जी को बता न शके और इस तरह उसने पिता जी की पसन्द की लड़की से भी शादी करनी पडी.. इस तरह प़दिपकुमार दो पत्नीओ के पति बने..!!
प़दिपकुमार की पहेली हिन्दी फिल्म आनंद मठ थी जो 1952 में आइ। फिल्म में प़िथवीराज कपुर भारत भूषण और गीता बाली भी थे। उसके बाद आइ अनारकली। फिल्म अनारकली के लीये अभीनेता शयाम शममी कपुर के भी screen taste लीये गयेे थे लेकिन पसन्द प़दिपकुमार हूवे। फिल्म अनारकली के संवाद उर्दू मिश्र हिन्दी में थे प़दिपकुमार को बंगाली जबान आती थी लेकिन उर्दू मिश्र हिन्दी बोलने में तकलीफ होती थी तो प़दिपकुमार के संवाद संवाद लेखक हमीद बट की आवाज में डब किये गये..!
फिल्म अनारकली पूरी हूइ लेकिन एक और नयी आफत आ पडी! फिल्म को कोई डीस्ट़बयुटर खरीद ने को तैयार न था! आखिर studio के मालिक जालन ने हिम्मत करके खुद फिल्म रीलिज की.. अनारकली ने उम्मीद से ज्यादा बिजनेस कीया फिल्म सफल हो गई!.
अनारकली के बाद प़दिपकुमार के पास ओर कोई काम न था कयोंकि वे contract से अनुबंधित थे तो कीसी और निर्माता निर्देशक की फिल्म में काम नहीं कर शकते थे।
आखिर हेमंत कुमार और एस. मूखरजी की मदद से उसे बहार की फिल्म में काम न कर शके एसी शर्त से मुक्ति मिली। सुबह का तारा फिल्म से प़दिपकुमार फिर से चलने लगे.. बाद में 1954 मे वैजयन्ती माला के साथ नागीन। 1956 मे राज कपुर की जागते रहो। मधुबाला के साथ राज हठ। गेटवे ओफ इंडिया। एक साल। जैसी फिल्में की। नरगिस के साथ अदालत और रात और दिन। मीना कुमारी के साथ आरती । चित्र लेखा। भीगी रात। नूर जहाँ। बहू बेगम जेसी फिल्मों में काम किया। घुंघट। संजोग। राखी। ताज महल। सहेली। मेरी सुरत तेरी आँखे। दुनिया ना माने। डीटेकटीव। अफसाना जेसी फिल्मों में काम किया। धार्मिक फिल्म महाभारत में भी प़दिपकुमार थे। अशोक कुमार के साथ प़दिपकुमार ने कयीं फिल्मों में काम किया।
कई फिल्म में हिरो का रोल अदा करने के बाद प़दिपकुमारने केरेक्टर रोल भी कीये। जैसे महेबुब की महेदी। चैताली ।।संबध। कागज की नाव। सतरंज के महोरे बगैराह। बाद में तो उनहोंने होरर फिल्मोंमे और बिलकुल फालतू रोल भी किये।
प़दिपकुमार को बी। आर। चोपड़ा ने फिल्म कानून और बिमलरोय ने फिल्म सुजाता में रोल ओफर कीये थे लेकिन प़दिपकुमार के सेक़ेटरी एस। एम। सागर तारिखो का एडजस्टमेंट न कर शके बाद में येह रोल राजेन्द्र कुमार और सुनील दत्त ने किये!
1956 मे प़दिपकुमार ने फिल्म निर्माता बननेको सोचा लेकिन उसे फिल्म प़ोडकशन का कोई अनुभव न था तो बहुत सारे पैसे गुमाये!
प़दिपकुमार अपनी जवानी में इतने खुबसूरत थे कि शाही भुमिका में वे बेनमून लगते थे। उसके सर पर ताज बहुत अच्छा लगता था। अपने समय में प़दिपकुमार सबसे ज्यादा पैसा लेने वाले कलाकार थे।
एक ही साथ मधुबाला और माला सिहा से उनकी दोस्ती थी । सुना हे इसी कारण माला सिहा ने प़दिपकुमार के घर जाकर गुस्से से उसे थप्पड़ मारी थी !
प़दिपकुमार जीस तरह की मूंछे रखतें थे उस प़कार की मूंछे रखने की उस वक्त फेसन चली थी! प़दिपकुमार का जब दौर चल रहा था तब शूटिंग के दौरान एक आदमी छत्ती पकड कर और एक आदमी प़दिपकुमार का सीगरेट का डबबा पकड़ कर खड़ा रहेता था!
प़दिपकुमार की एक बेटी बीना ने भी फिल्मों में काम किया हे । गुलज़ार से शादी की उस से पहले राखी ने एक अजोय विस्वास शादी की थी राखी ने उससे divorce लीया ... बीना ने उसी अजोय विस्वास से शादी की थी।
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