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Tuesday, January 4, 2022

नीरज जी

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई !
पांव जब तलक उठें कि ज़िंदगी फिसल गई !!
पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई !
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई !!
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गोपालदास सक्सेना 'नीरज' जिन्हें हिंदी साहित्य का सजीव महाकाव्य कहा जाए तो ग़लत न होगा, रचना-संग्रह , ग़ज़लें,हाइकु, गीत-कविताएं, मुक्तक, बाल-कविताएं और फ़िल्मी-गीत सब में उन्हें महारत हासिल थी।

नीरज जी का जन्म ४ जनवरी १९२५ को इटावा जिले के ब्लॉक महेवा के निकट पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहाँ हुआ था। मात्र 6 वर्ष की आयु में पिता गुजर गये। १९४२में एटा से हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। लम्बी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहाँ से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डी०ए०वी कॉलेज में क्लर्की की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया। नौकरी करने के साथ पढ़ाई जारी रखी और हिन्दी साहित्य से एम०ए० किया। मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।

उनकी प्रमुख रचनाएं ।
संघर्ष (१९४४) अन्तर्ध्वनि (१९४६) विभावरी (1१९४८) प्राणगीत (1१९५१) दर्द दिया है (१९५६) बादर बरस गयो (१९५७) मुक्तकी,दो गीत ,नीरज की पाती (१९५८) गीत भी अगीत भी (१९५९) आसावरी, नदी किनारे, लहर पुकारे (१९६३) कारवाँ गुजर गया (१९६४) फिर दीप जलेगा (१९७०) तुम्हारे लिये (१९७२) नीरज की गीतिकाएँ (१९८७)

कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज जी को बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में 'नई उमर की नई फसल' के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा।

यूँ तो 'नीरज' जी ने फिल्मों में तमाम गीत लिखे, उनमें से कुछ गीत हैं।

फ़िल्म 'शर्मीली' "आज मदहोश हुआ जाये रे मेरा मन..मेरा मन" 
फ़िल्म 'गैंबलर' "दिल आज शायर है गम आज नगमा है"
फिल्म 'शर्मीली' "खिलते हैं गुल यहां..मिलके बिखरने"
फिल्म 'मेरा नाम जोकर' "ऐ भाई जरा देख के चलो, आगे ही नहीं पीछे भी"
फिल्म 'चंदा और बिजली' "काल का पहिया घूमे भैया"
फिल्म 'कन्यादान' "लिखे जो खत तुझे"
फिल्म 'नई उमर नई फसल' "कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे" नीरज की कालजयी गीतों में शुमार की जाती है।
फिल्म 'प्रेम पुजारी' "फूलों के कलम से, दिल की कलम से"
फिल्म 'प्रेम पुजारी' "रंगीला रे तेरे रंग में"
फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' "शोखियों में घोला जाए फूलों का शवाब"

किन्तु बम्बई की ज़िन्दगी से भी उनका मन बहुत जल्द उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये।

साहित्य और फिल्मों में गीत लेखन के लिए उन्हें तमाम पुरुस्कारों से नवाज़ा गया।
विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार , पद्म श्री सम्मान , यश भारती, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ , पद्म भूषण सम्मान , फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये सत्तर के दशक में लगातार तीन बार फ़िल्मफ़ेअर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार ने नीरज जी को भाषा संस्थान का अध्यक्ष नामित कर कैबिनेट मन्त्री का दर्जा भी दिया था।

इस महान साहित्यकार ने १९ जुलाई २०१८ को हम सब विदा ले लिया।

इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में !
लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में !!
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर !
ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में !!

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