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Thursday, December 9, 2021

धरम

जब मैं खुदा से मिलूंगा तो शिक़ायत करूंगा कि मुझे धर्मेंद्र जैसा हैंडसम क्यों नहीं बनाया :- 

आज 08 दिसंबर है । आज हरदिल अज़ीज एक्टर धर्मेंद्र ने 86 साल पूरे कर लिए। यानी आज उनका जन्मदिन है। धर्मेन्द्र जब साठ के दशक मे मुम्बई आये तो उस समय राज कपूर, दिलीप कुमार और देवानंद की तिकड़ी पर्दे पर राज किया करती थी। अशोक कुमार थे तो इनसे ऊपर लेकिन रोमांटिक हीरो नहीं थे। राजेंद्र कुमार जुबली कुमार कहलाते थे। 

धर्मेंद्र के शुरुआती दौर की एक फिल्म थी 'आई मिलन की बेला' ।लेकिन वो उसमें हीरो नहीं विलेन थे। फ़िल्म के पहले ही शो में आये लड़कियों  के समूह के मुंह से शब्द निकले - "हाय राम, यह तो हीरो से भी ज्यादा डैशिंग है।"

तब लोगों ने जाना कि धर्मेंद्र फिल्मफेयर और यूनाइटेड प्रोड्यूसर टैलेंट हंट की पैदाइश हैं। इसके बावजूद उन्हें फ़िल्में नहीं मिल रही थीं। उन्हें कहा गया, तू पहलवान दिखता है। जा अखाड़े में कुश्ती लड़। एक बार वो बेहोश हो गए। डॉक्टर ने कहा - कुछ नहीं हुआ इसे। भूखा है। कुछ खिलाओ। 

धर्मेंद्र की पहली फ़िल्म थी - "दिल भी तेरा हम भी तेरे।" फ़िल्म फ्लॉप हो गयी। लेकिन धर्मेन्द्र चल निकले।अनपढ़ , पूर्णिमा, मझली दीदी, काजल, मैं भी लड़की हूं, बंदिनी, पूजा के फूल, ममता, आपकी परछाईयां, अनुपमा जैसी अनेक नायिका प्रधान फिल्मों के हीरो बन गए। बात कुछ जम नहीं रही थी। 

''औरतों का हीरो' का तमगा मिलने ही वाला था कि राजेंद्र कुमार ने उन्हें 'आई मिलन की बेला' में विलेन का रोल दिलाया। लेकिन उलटे राजेंद्र कुमार की डैशिंग पर्सनाल्टी हीरो पर भारी पड़ गए धर्मेंद्र। लेकिन एक और मुसीबत , अब उनके पास विलेन के रोल आने शुरू हो गए। 

राजेंद्र कुमार फिर उनके काम आये। अपने बहनोई ओपी रल्हन की 'फूल और पत्थर' दिलाई। रल्हन को धर्मेंद्र से कोई नामालूम खुन्नस थी। वो उन्हें लेना नहीं चाहते थे।

लेकिन पैसा राजेंद्र कुमार का लगा था। फिर सारी खुदाई एक तरफ और जोरू का भाई एक तरफ। रल्हन सीधे-सीधे न भी नहीं कर सके। मीना कुमारी के सामने धर्मेंद्र को शर्ट उतारने का सीन करना था। धर्मेंद्र बिदक गए वो। मीना जी इतनी सीनियर आर्टिस्ट के सामने शर्ट उतारूं? ना बाबा ना। रल्हन तो मौका तलाश ही रहे थे उन्हें बाहर करने का। लेकिन राजेंद्र कुमार ने धर्मेंद्र को समझाया कि भावुक मत बनो। बताते हैं, मीना जी ने भी उन्हें क़सम दिलाई। तब जाकर धर्मेंद्र तैयार हुए। उन दिनों मीना और धर्मेंद्र के अंदर कुछ 'गुप-चुप' को लेकर चर्चायें भी बहुत थीं। 

बहरहाल, फूल और पत्थर सुपर हिट हुई। धर्मेंद्र 'ही मैन' बन गए। साडे पंजाब दा पुत्तर। इसके बाद धर्मेंद्र ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। स्टार बन गए वो। 'धरम जी' कहलाने लगे। कामयाबी सर चढ़ कर बोलने लगी। थोड़ा गरम होने लगे। 'धरम-गरम' हो गए। 288 फ़िल्में कर गए। 

धरमजी एक मात्र हीरो हैं जो रोमांटिक होने के साथ साथ ड्रामा, कॉमेडी और एक्शन के भी बादशाह रहे। हर फॉर्मेट में उन्हें देख कर ऐसा लगा, जैसे वो इसी के लिए बने हैं। उस दौर में बिमल राय, हृषिकेश मुख़र्जी, दुलाल गुहा, असित सेन, यश चोपड़ा, राज खोसला, बसु चैटर्जी, मनमोहन देसाई, प्रमोद चक्रवर्ती, रमेश सिप्पी आदि तमाम बड़े डाइरेक्टर्स के साथ काम किया। तुम हसीं मैं जवां, शोले, सीता और गीता, प्रतिज्ञा, नया ज़माना, शिकारी, ब्लैकमेल, राम बलराम, शालीमार, चुपके चुपके, आज़ाद, जुगनू, राजा जानी, शराफ़त, दो चोर, दोस्त, धर्मवीर, चाचा-भतीजा, चरस, आंखें, ललकार, आदमी और इंसान, कातिलों का कातिल, मेरा गांव मेरा देश, दो चोर आदि बेशुमार हिट फ़िल्में की। हृषिकेश मुखर्जी की 'सत्यकाम' हिट तो नहीं हुई, लेकिन अच्छी और सार्थक फिल्म देखने वाले वर्ग में सराही बहुत गयी। मैं इसे धरम जी की श्रेष्ठ फिल्मों में गिनता हूँ। 

बहुतों को हज़म नहीं हुआ, धर्मेंद्र ने जब दो शादियां की। पहली शादी 1954 में तब हुई जब वो महज़ 19 साल के थे और दूसरी शादी 1980 में हेमा मालिनी के साथ।  आप हीरो हो, आपसे आदर्श स्थापित करने की अपेक्षा की जाती है। धरम जी ने दिल तोड़ दिया। बहरहाल, हेमा के साथ उन्होंने दो दर्जन से ज्यादा फ़िल्में की। ज्यादातर हिट रहीं इसमें। 

उन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया है। 1970 में वो दुनिया के हैंडसम पर्सन चुने गए। फ़िल्मी दुनिया में आये धरम जी को छप्पन साल हो चुके हैं। पता ही नहीं चला, वो कब धरम जी से धरम पा'जी हो गए। 

धरम पा'जी को ज़िंदगी भर मलाल रहा कि कई बार नॉमिनेट होने के बावजूद उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट एक्टर अवार्ड नहीं मिला। लेकिन 1997 में उनकी यह ख्वाईश पूरी हुई। लेकिन उन्होंने एक शर्त रख दी, अवार्ड लूंगा तो अपने महबूब और आदर्श अदाकार दिलीप कुमार के हाथों से। और उनकी ये शर्त पूरी हुई। फ़िल्मफ़ेयर का लाईफ़टाईम अचीवमेंट अवार्ड देते हुए दिलीप कुमार ने कहा - जब मैं खुदा से मिलूंगा तो शिक़ायत करूंगा कि मुझे धर्मेंद्र जैसा हैंडसम क्यों नहीं बनाया?

 फिल्म प्रतिज्ञा का यह सुपर डुपर हिट गीत । इसे गाया है मोहम्मद रफी ने । लिखा है आनंद बक्शी ने और संगीत से सजाया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने । यह गाना आज भी धर्मेंद्र का ट्रेडमार्क गीत माना जाता है ।

मैं जट यमला पगला दीवाना
हो रब्बा इत्ती सी बात ना जाना
के के के, ओ मैनू प्यार करती है
साडे उत्ते ओ मरदी है

Pratiggya //  Md Rafi

#भूलेबिसरेनगमे #भूलेबिसरेगीत #MdRafi

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