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Monday, December 27, 2021

उलझन

ओल्ड एज गोल्ड...1975...उलझन...पारिवारिक थ्रिलर सस्पेंस फ़िल्म...जिसने ज़बरदस्त सफलता प्राप्त की थी बिना मारधाड़ की फ़िल्म इतनी बड़ी थ्रिलर सस्पेंस हो सकती है ये विषय चौकाने वाला था...इस फ़िल्म की दूसरी खासियत थी फ़िल्म शुरुआत से ही मुद्दे पर आ जाती है इस पर भी फ़िल्म 3 घण्टे की लाजवाब थी, 
तीसरी खासियत थी चुस्त निर्देशन।
चौथी खासियत थी फ़िल्म के गाने और बैकग्राउंड संगीत।।।।
फ़िल्म की कहानी सारांशतः ये थी शादी के रात ननद की इज्जत की खातिर दुल्हन अनजाने में खून कर बैठती है पर कत्ल का गवाह सब जानता है अंत मे अदालत में गवाही देकर दुल्हन को और उसके परिवार की इज्जत को बचा लेता है।
इस मामूली कहानी को गज़ब के तरीके से प्रस्तुत किया था मशहूर निर्देशक रघुनाथ झालानी(सिन्धी) ने कहना न होगा 3 घण्टे की फ़िल्म सीट से उठने की इजाज़त नही देती..अकल्पनीय थ्रिलर...फ़िल्म में कल्याणजी आनन्दजी ने जोरदार संगीत दिया था मुझे आजीवन दुख रहेगा इस महान संगीतकार को सही योग्य स्थान नही मिला।
संजीवकुमार, सुलक्षणा पंडित, असरानी, पिचू कपूर, अशोककुमार, उर्मिला भट्ट, फरीदा जलाल, अरुणा ईरानी, आगा, विजु खोटे, अमृत पटेल, शिवराज, मास्टर राजु,रणजीत, इत्यादि द्वारा अभिनीत फिल्म में सभी का काम बेमिसाल था पर उलझन की कशमकश में पुलिस की भूमिका में संजीव कुमार कमाल किया था इस फ़िल्म के लिए उन्हें बेस्ट अदाकार के लिए नामिटेड किया गया था।
असरानी ने बेमिसाल विपरीत भूमिका दोस्त की की थी फ़िल्म के जानदार संवाद असरानी के खाते में आये थे।
ये फ़िल्म 1952 की कंगन की नकल थी जिसे पूरी अक्ल से बनाया गया था कंगन में अशोककुमार थे इस फ़िल्म में भी वकील की शानदार भूमिका की थी हैरत की बात ये दोनों ही फ़िल्म सुपर हिट हुई थी।
कुल जमा बात ये थी जिस फ़िल्म को अच्छा बनना होता है उस फिल्म का हर पक्ष मजबूत अपने आप हो जाता है।
1975 का साल मेने पहले भी लिखा है फ़िल्म इतिहास का श्रवन काल था इस साल अधिकांश फिल्में हिट हुई थी इसी साल.... शोले, चुपके चुपके, प्रतिज्ञा, दीवार, काला सोना, धर्मात्मा, जय संतोषी माँ, सन्यासी, अपने रँग हजार, उम्र कैद, ज़ख़्मी, दो जासूस, जुली, अंधेरा, जान हाजिर है, शैतान, फरार, दूसरी सीता, मिली, आंदोलन, राजा, ज़िंदा दिल, इत्यादि फिल्मों की धूम थी।
ये फ़िल्म रायपुर की बाबूलाल में 12 हफ्ते, गोंदिया की राजलक्ष्मी में 5 हफ्ते, नागपुर की वैरायटी और जयश्री में संयुक्त 34 हफ्ते, मुम्बई(तब बॉम्बे) की शालीमार में 48 हफ्ते चली थी।
इसी फिल्म को बाद में तेलगु, तमिल, बंगाली, मराठी में बनाया गया जो हिट साबित हुई थी।
इस फ़िल्म को श्रृंगार फिल्स अमरावती द्वारा वितरित किया गया था जो नफ़े का सौदा बनी, ये सुलक्षणा पंडित की पहली फ़िल्म थी आज 45 साल के बाद भी फ़िल्म ताज़गी लिए हुए है कभी समय निकालकर इस थिरलर सस्पेंस फ़िल्म को जरूर देखें मन मे उमंग आ जायेगी...
क्या आप जानते है:::::::;; इस फ़िल्म के निर्माता सुदेशकुमार एक ज़माने में हिंदी फिल्मों में सहायक भूमिकाएं करते थे हीरो की भूमिका(सारंगा) भी की थी उनकी पहली हिन्दी फ़िल्म थी ..गुलाम बेगम बादशाह(1973) और आखरी फ़िल्म थी जान हथेली पे(1988) उन्होंने बदलते रिश्ते भी बनाई थी जो 1977 में बनी थी उनकी सारी फिल्मों के निर्देशक थे....रघुनाथ झालानी सारी फिल्में सुपर हिट हुई थी अकल्पनीय धन कमाने के बाद उन्होंने फिल्म दुनिया छोड़कर सन्यासी का जीवन जिया।
सुलक्षणा पंडित को इस फ़िल्म के बाद 11 फिल्में मिली पर सफलता नही इसी फिल्म के दौरान उनका संजीव कुमार के साथ रोमान्स शुरू हुआ जो संजीव कुमार की मृत्यु तक चला और सुलक्षणा पण्डित ने आजीवन शादी नही की।।
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