'दिल अभी भsssरा नहीं' देव साहब
जब भी साहिर लुधियानवी जी का ज़िक्र होता हैं, तो उनके साथ फ़िल्म - 'हम दोनों' (१९६१) की यह 'रोमानी नज़्म' भी याद आती हैं ... एकांत में 'आशिक़-ओ-माशुका' को मिले काफ़ी वक़्त गुजर चुका हैं अब माशुका घर जाना चाहती हैं, और आशिक़ चाहता हैं, की वोह अभी ना जाये, और इसी सिचुएशन पर साहिर ने यह नज़्म लिखी हैं ... 'जयदेव साहब ने इसे मधुर धुन में बांध कर अमर कर दिया हैं...
स्वर - मो.रफ़ी और आशा भोंसले
आनंद की प्रेयसी मीता उसे तोहफ़े में एक लाइटर देती हैं जिसे जलाते ही मधुर धुन बजती हैं, दोनों को शहर के बाहर एकांत में मिले काफ़ी वक़्त हो चुका हैं, आनंद आँखे मूंदकर लेटा हैं और जैसे ही साधना (मीता) चुपके से उठकर जाना चाहती हैं, तो देखती हैं कि, कपड़े के टुकड़ेका एक सिरा उसकी बालों में बंधा हैं तो दूसरा देव की हाथों में हैं ... वोह बेल्ट को छुड़ाती हैं तब ...
प्रील्यूड ... संतूर के स्वर ... साधना की ओर देखते देव साहब के लिए रफ़ी ...
अभी ना जाओ छोड़कर कर दिल अभी भरा नहीं ... 'अsभी भssरा नहीं' से रफ़ी दिल पर कब्ज़ा कर लेते हैं
अभी ना जाओ छोड़कर कर दिल अभी भरा नहीं
इंटरल्यूड में ऑर्गन ...फिर रफ़ी का आवाज़ में तो अदाकारी में देव साहब का जवाब नहीं ...
अभी अभी तो आई हो, अभी अभी तो ... ऑर्गन
अभी अभी तो आई हो, बहार बन के छाई हो
हवा ज़रा महक तो ले, नजर ज़रा बहक तो ले ... साहिर के लफ़्जों की कमाल
ये शाम ढल तो ले ज़रा
ये शाम ढल तो ले ज़रा, ये दिल संभल तो ले ज़रा ...ऑर्गन का पीस
मैं थोड़ी देर जी तो लूँ, नशे के घूँट पी तो लूँ
नशे के घूँट पी तो लूँ
अभी तो कुछ कहा नहीं, अभी तो कुछ सूना नहीं ...
अभी ना जाओ छोड़कर कर दिल अभी भरा नहीं
इंटरल्यूड में ऑर्गन अब आशा ... श्रोताओं को, दर्शकों को संमोहित करते हुए
सितारे झिलमिला उठे ... संतूर का पीस
सितारे झिलमिला उठे, चराग जगमगा उठे ... आनंद को वक़्त का एहसास कराती मीता
बस अब ना मुझ को टोकना
बस अब ना मुझ को टोकना, न बढ़ के राह रोकना
अगर मैं रुक गयी अभी, तो जा न पाऊँगी कभी ... मीता की मज़बूरी लफ़्जों में बयां करती आशा
यही कहोगे तुम सदा के दिल अभी नहीं भरा
जो ख़त्म हो किसी जगह, ये ऐसा सिलसिला नहीं ...
अभी नहीं अभी नहीं ... आनंद की ज़िद
नहीं नहीं नहीं नहीं ... मीता इंकार करती हुई ...
अभी ना जाओ छोड़कर कर दिल अभी भरा नहीं ... आनंद की बिनती
इंटरल्यूड में ऑर्गन ...अब रफ़ी साब की आवाज़ में आनंद की याचना मीता से
अधूरी आस
अधूरी आस छोड़ के, अधूरी प्यास छोड़ के ...'अधूरी आsस छोssड़ के' रफ़ी साहब का गाने का गज़ब ढंग
जो रोज़ यूँ ही जाओगी, तो किस तरह निभाओगी ...आनंद की शिकायत
के ज़िन्दगी की राह में, जवाँ दिलों की चाह में
कई मकाम आयेंगे, जो हम को आजमाएंगे
बुरा ना मानो बात का, ये प्यार है गिला नहीं ...फ़िर मीता को समझाता हैं की, ये प्यार हैं गिला या शिकवा नहीं
यही कहोगे तुम सदा के दिल अभी भरा नहीं ...मीता उसे समझाती हुई
हाँ, दिल अभी भरा नहीं ...आनंद का इकरार
नहीं नहीं नहीं नहीं ...तो मीता का फ़िर इंकार ... 'नहीं नहीं नहीं नहीं' ... हर बार 'नहीं' का उच्चारण अलग अलग करके आशा का नायाब गायन
पोस्टल्यूड में ऑर्गन बज रहा हैं ... हाथों में हाथ डालकर दोनों प्रेमी अपने घर की ओर लौट रहें हैं ...
पूरी नज़्म के लिए ...पर्दे के पीछे साहिर, जयदेव, रफ़ी, आशा को तो पर्देपर बेहद रोमांटिक ढंग से अदा करनेवाले देव साहब और साधना को सलाम !!!
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