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Wednesday, November 17, 2021

शारदा

हिंदी फिल्मों के 60वें दशक की मशहूर पार्श्व गायिका शारदा के बारे में जिन्होंने अपनी विशेष छाप छोड़ी और फिर फ़िल्मी दुनिया से गायब हो गयीं।

गायिका शारदा जी (पूरा नाम शारदा राजन आयंगर) का जन्म दक्षिण भारत में हुआ और फिर वहाँ से ये मुम्बई गयीं और बाद में अपने परिवार के साथ तेहरान चली गयीं। वहीँ राज कपूर से उनकी मुलाकात हुई। तमिल भाषी होने के बावजूद उन्हें हिंदी गीतों में अधिक रूचि थी। वे हिंदी फिल्मों के बारे में अपनी चचेरी बहन (जो उत्तर भारत में रहती थीं) से बहुत सुना करती थी। नूरजहाँ के गीत सुनने को वे चाय  या पान की दूकान पर भी रुक जाया करतीं। हिंदी बोलना नहीं आता था परन्तु मुम्बई शिफ्ट होने के बाद हिंदी बोलना सीखा। उनकी माता जी को कर्णाटक संगीत का ज्ञान था परन्तु उन्होंने मुम्बई में ही संगीत की शिक्षा ली।

राज कपूर ने उन्हें तेहरान में एक पार्टी में गाते सुना तो उन्हें मुम्बई आने का निमन्त्रण दे डाला। मुम्बई [पहुँच कर उन्होंने आर के स्टूडियो में अपना ऑडिशन दिया, जिसमें उन्होंने बरसात फिल्म का गाना “मुझे किसी से प्यार  हो गया” और “बिछुड़े हुए परदेसी” सुनाया। ऑडिशन में उन्हें सुनने वालों में राज जी के अलवा उनकी पत्नी कृष्णा जी और रणधीर और ऋषि कपूर भी थे। यहीं से शारदा जी के लिए फिल्मी दुनिया के दरवाज़े खुल गए।

राज जी ने उन्हें शंकर जयकिशन के पास भेजा जहाँ उन्हें पार्श्व गायन के लिए प्रशिक्षित किया जाने लगा। उनका पहला गाना फिल्म सूरज [1966] में  “तितली उडी” था जिस के लिए उन्हें फिल्मफेयर का विशेष अवार्ड भी मिला क्योंकि रफ़ी साहब के नॉमिनेटेड गीत ‘बहारों फूल बरसाओ’ के बराबर वोट मिले थे।

फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का अवार्ड उन्हें 1970 में फिल्म- ”जहाँ प्यार मिले” के गीत ‘बात ज़रा..’ के लिए मिला। शारदा जी को फिल्मों में अभिनय के ऑफर  भी मिले परन्तु उन्होंने गायन को ही अपना क्षेत्र चुना। शारदा जी के चाहने वाले और आलोचक लगभग बराबर ही अगर कहा जाये तो अतिश्योक्ति न होगी। अपने फ़िल्मी सफ़र को वे सफल मानती हैं।

उन्होंने ‘ग़रीबी हटाओ’, ‘मंदिर मस्जिद’, ‘मैला आँचल’, ‘तू मेरी मैं तेरा’, ‘क्षितिज’ आदि फिल्मों में  संगीत निर्देशन भी दिया है। उनके संगीत निर्देशन में आशा, मुकेश, रफ़ी साहब, मन्ना डे , किशोर कुमार, महेंद्र कपूर आदि ने गाया है। एचएमवी के साथ कॉन्ट्रैक्ट कर भारत में पहली बार पॉप संगीत रिकॉर्ड किया.उन्होंने  एक के बाद एक तीन एलबम निकाले, जो सफल रहे। गायक मुकेश के साथ उन्होंने सबसे अधिक दोगाने गाये परन्तु वे रफ़ी साहब की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं और उनसे गायकी के गुर सीखा करती थीं।

शारदा जी यूँ तो फ़िल्मी दुनिया से दूर हो गयी हैं किन्तु वे आज भी स्टेज और प्राईवेट प्रोग्राम करती रहती हैं। ‘। वे बहुत सरल  स्वभाव की हैं जिसके कारण आज भी लोग उन्हें चाहते हैं। वे अमेरिका में रहती हैं और बहुत सक्रीय हैं। 2007 में उन्होंने ग़ालिब की ग़ज़लों की अल्बम भी निकाली थी।

फिल्मों के लिए रिकॉर्ड हुआ उनका आखिरी गीत फिल्म कांच की दीवार (1986) के लिए था – ‘अइयों न मारो तीर का निशाना’

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