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Thursday, November 25, 2021

साहिर

साहिर लुधियानवी उन गिने-चुने गीतकारों में से हैं जिनके गानों को सुनकर उनकी लव लाइफ़ के अंदाज़े लगाए जाते थे। उन्होंने ख़ुद किसी का नाम अपने से नहीं जोड़ा। उन दिनों जब सुधा मल्होत्रा और साहिर के चर्चे थे, तब साहिर का गीत आया 'चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों', तब लोगों ने माना कि दोनों अलग हो चुके हैं। हालांकि सुधा मल्होत्रा आज तक भी इस बात से इंकार करती हैं कि उन्हें साहिर उस तरह से कभी भी पसंद थे जिस तरह से ख़बरें छपा करती थीं। 

अमृता ने भी आख़िरी ख़त से लेकर इमरोज़ की पीठ और रसीदी टिकट तक साहिर का नाम लिखा लेकिन साहिर ख़ामोश रहे। साहिर की ओर से भी जो बातें थी वो भी अधिकतर अमृता ने ही सुनाई हैं। वे कहती हैं कि आख़िरी ख़त को पढ़कर साहिर ने कहा कि वे चाहते हैं कि पूरी दुनिया को पता चल जाए कि यह उनके लिए लिखा गया है लेकिन तब भी साहिर ने अपने किसी ख़ास दोस्त को भी यह बात नहीं बताई। जबकि साहिर दोस्तों से घिरे रहना पसंद करते थे, घिरे भी रहते थे। अमृता जब इमरोज़ के पास गयीं उसके बाद साहिर ने लिखा कि महफ़िल से उठ जाने वालों तुम पर क्या इल्ज़ाम, तुम आबाद घरों के वासी...। तब लोगों को लगा कि यह अमृता और इमरोज़ के लिए लिखा गया है। फिर भी साहिर ख़ामोश ही रहे। 1944 में अमृता से मुलाक़ात के बाद भी साहिर का नाम कई औरतों के साथ जुड़ा।

साहिर लुधियानवी की बायोग्राफ़ी जो अक्षय मनवानी ने लिखी है, उसमें साहिर के साथ काम कर चुके कई लोगों ने उनके बारे में अपने विचार लिखे हैं लेकिन उनकी लव लाइफ़ पर कोई विस्तृत चर्चा नहीं है या किसी ने साहिर के पक्ष को रखा हो। साहिर को ख़ूब बोलने की आदत थी, शराब पीकर वह बेकाबू भी हो जाते थे लेकिन अमृता या किसी का भी नाम कहीं नहीं लिया।

जावेद अख़्तर ने साहिर और उनके लेखन को सबसे बेहतर तरीके से पकड़ा है। जावेद के पिता जां निसार साहिर के क़रीबी दोस्तों में से एक थे, जावेद की ख़ुद भी उनसे नज़दीकी मुलाक़ातें रही हैं। साहिर और अमृता से जुड़े सवाल पर जावेद जवाब देते हैं कि – “बड़े लोग अपनी मोहब्बत में एनेकडोट जोड़ते हैं जिससे पर्सनैलिटी चार्मिंग और फ़ैसिनेटिंग लगती है, जिसे लोग पढ़ें तो कहें कि क्या बात है, अजीब ही ज़िंदगी थी इसकी। वे चाहते तो रह लेते एक साथ किसने रोका था। साहिर की ज़िंदगी में ऐसे कई एपिसोड हुए अमृता की में भी लेकिन हम बेवकूफ़ अक़ीदत से सुनते हैं ये कहानियाँ। ये सब पर्सनैलिटी को सजाने के काम हैं।“

एक बात है कि साहिर के लेखन का फ़लक इतना ऊँचा है कि उस की थाह पा लेना आसान भी नहीं है। एक नास्तिक होते हुए भी उन्होंने सुंदर भजन लिखे हैं। एक बार उन्होंने कहा भी कि मैं किस्मत को नहीं मानता तो उस पर गीत क्यूं लिखूं लेकिन यश चोपड़ा ने कहा कि उन्हें कोई कविता नहीं लिखनी फ़िल्म के दृश्य पर गीत लिखना है, तब इसी किस्मत पर साहिर की कलम ख़ूब चली। तब साहिर ने कौन सा गीत किसके लिए लिखा या नहीं लिखा ये तो कहना मुश्किल है। लेकिन वो स्टार गीतकार थे और सिंगल भी, अफ़वाहें तो लाज़िमी थीं जो आज तक चली आ रही हैं।
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