1950 और 60 का दशक हिंदी म्यूज़िक इंडस्ट्री में गोल्डन एरा माना जाता है. आखिर माना भी क्यों ना जाए. मानो कुदरत ने अपने सारे रत्न एक साथ हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को इसी दौरान सौंप दिए थे. किशोर, रफ़ी, मुकेश की आवाज़ें जहां पुरुषों के दुख, उम्मीद और प्यार की आवाज़ बन रही थीं. वहीं फीमेल वॉयस के नाम पर सबकी पसंद मंगेशकर बहनें थीं. जिसमें लता जी की डिमांड पीक पर रहती थी. डिमांड ऐसी कि उस दौर में भी लता जी एक गाना गाने के 100 रुपये लेती थीं. बिज़ी शेड्यूल और महंगी फीस के चलते लता जी तक सिर्फ कुछ ही बेहद बड़े प्रड्यूसर्स पहुंच पाते थे. ज़्यादातर प्रड्यूसर्स को उनकी डेट्स नहीं मिलती थीं और कुछ उनकी महंगी फीस की वजह से उनके पास जाते ही नहीं थे.
ऐसे दौर में हूबहू लता मंगेशकर की आवाज़ वाली सिंगर मिलना इन प्रड्यूसर्स के लिए खज़ाना मिलने से कम नहीं था. परिणाम स्वरूप सुमन कल्याणपुर जी के पास फिल्मों का तांता लग गया. एक तरीके से इंडस्ट्री को दूसरी लता मिल गयी थीं. कहा जाता है कि ये बात लता जी को बिल्कुल पसंद नहीं आती थी कि कोई उनकी आवाज़ की नकल करता है. कहते हैं कि उन्होंने कई प्रड्यूसर्स से कह भी दिया था अगर वो सुमन के साथ काम करेंगे, तो वो उनके साथ काम नहीं करेंगी.
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