वी. शांताराम एक फ़िल्मकार, अभिनेता और फिल्म निर्माता निर्देशक तथा सिनेमा जगत के पितामह थे। 16 साल की उम्र में मात्र पांच रुपए मासिक पर उन्होंने टीन शेड वाले सिनेमा हाल में अपने करियर की शुरुआत की। 1921 में सुरेखा हरण नामक मुक फिल्म से बतौर अभिनेता अपने सफर की शुरुआत करने के बाद वे फिल्म निर्देशन से जुड़ गए। 1927 में नेताजी पालकर बतौर निर्देशक ने डॉक्टर कोटनिस की ‘अमर कहानी’ (1946), ‘अमर भूपाली’ (1951), ‘झनक-झनक पायल बाजे’ (1955), ‘दो आंखें बारह हाथ’ (1957) और ‘नवरंग’ (1959) जैसी विविधतापूर्ण और गूढ़ अर्थों वाली फ़िल्में बनाकर अलग मुक़ाम हासिल किया था। 1985 में उन्हे दादा साहेब फाल्के अवार्ड से नवाजा गया।
जन्म
वी. शांताराम जी का जन्म 18 नवंबर 1901को कोल्हापुर, महाराष्ट्र में हुआ था। उनका पूरा नाम राजाराम वांकुडरे शांताराम था।
करियर
16 साल की उम्र में मात्र पांच रुपए मासिक पर उन्होंने टीन शेड वाले सिनेमा हाल में अपने करियर की शुरुआत की। 1925 में बतौर अभिनेता एक फिल्म की।1927 में नेताजी पालकर बतौर निर्देशक ने डॉक्टर कोटनिस की ‘अमर कहानी’ (1946), ‘अमर भूपाली’ (1951), ‘झनक-झनक पायल बाजे’ (1955), ‘दो आंखें बारह हाथ’ (1957) और ‘नवरंग’ (1959) जैसी विविधतापूर्ण और गूढ़ अर्थों वाली फ़िल्में बनाकर अलग मुक़ाम हासिल किया था। 1946 में उनकी फिल्म शकुंतला 104 हफ्ते चली। 1957 में आई फिल्म ‘दो आंखें बारह हाथ’ को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली। उनकी आखिरी फिल्म ‘झांझर’ थी।
सिनेमा जगत के पितामह
फिल्मों की दुनिया में कदम उन्होंने 1920 में रखा, वे बाबू राव पेंटर की ‘महाराष्ट्र फिल्म कंपनी’ से जुड़कर फिल्म बनाने की बारीकियां सीखीं। एक साल बाद 1921 में उन्हें मूक फिल्म ‘सुरेख हरण’ में बतौर अभिनेता काम करने का मौका मिला। 1929 में उन्होंने अपनी प्रभात कंपनी फिल्म्स की स्थापना की जो आज भी काफी प्रसिद्ध है। इसके बैनर तले उन्होंने खूनी खंजर, रानी साहिबा और उदयकाल सरीखी फिल्में बनाईं। अपने कंपनी के बैनर तले शांताराम ने लगभग 50 फिल्मों का निर्माण किया।
फिल्म
1957 – दो आँखें बारह हाथ आदिनाथ
1959 – नवरंग
1967 – गुनाहों का देवता
1967 – बूँद जो बन गयी मोती
1964 – गीत गाया पत्थरों ने
1959 – नवरंग
1957 – दो आँखें बारह हाथ
1955 – झनक झनक पायल बाजे
1946 – अमर कहानी
1951 – अमर भूपाली
पुरस्कार
1957 में वी. शांताराम को झनक-झनक पायल बाजे के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया था।
उनकी कालजयी फ़िल्म दो आंखें बारह हाथ के लिए सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार प्रदान किया गया
1985 में उन्हे दादा साहेब फाल्के अवार्ड से नवाजा गया।
उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया।
No comments:
Post a Comment