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Friday, November 26, 2021

तुम जो मिल गए हो :-

तुम जो मिल गए हो :- 

साल था 1973 । बॉलीवुड के पर्दे पर निर्देशक चेतन आनंद की फ़िल्म "हंसते जख्म" रिलीज हुई । फ़िल्म म्यूजिकल हिट साबित हुई । कहते हैं कि कुछ फ़िल्में अपने गीत-संगीत के लिए हमेशा याद की जाती है तो कुछ फ़िल्में अपनी कहानी को ही बेहद काव्यात्मक रूप से पेश करती है, जैसे उस फिल्म से गुजरना एक अनुभव हो किसी कविता से गुजरने जैसा। "हँसते ज़ख्म" भी ऐसी ही फ़िल्म थी ।  जिसमें एक अनूठी कहानी को बेहद शायराना /काव्यात्मक अंदाज़ में निर्देशक ने पेश किया था । हमेशा की तरह यहाँ भी फिल्म के गीतकार कैफ़ी आज़मी थे। 

फिल्म अभिनेत्री प्रिया राजवंश की संवाद अदायगी, नवीन निश्चल के बागी तेवर और बलराज साहनी के सशक्त अभिनय के लिए "हंसते जख्म" आज भी याद की जाती है । पर फिल्म का एक पक्ष ऐसा था जिसके बारे में निसंदेह कहा जा सकता है कि ये उस दौर में भी सफल था और आज तो इसे एक क्लासिक का दर्जा हासिल हो चुका है ।  मदन मोहन, कैफ़ी साहब, मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर के रचे उस सुरीले संसार की जिसका एक एक मोती सहेज कर रखने लायक है. 

"तुम जो मिल गए हो, तो लगता है कि जहाँ मिल गया...." कैफ़ी साहब के इन बोलों पर रचा मदन मोहन साहब का संगीत उनके बेहतरीन कामों में से एक है। ये गीत फिल्म की कहानी में एक ख़ास मुकाम पर आता है। जाहिर है इसे भी कुछ ख़ास होना ही था। गीत बहुत ही नाज़ुक अंदाज़ से शुरू होता है, जहाँ पार्श्व वाध्य लगभग न के बराबर हैं। शुरूआती बोल सुनते ही रात की रूमानियत और सब कुछ पा लेने की ख़ुशी को अभिव्यक्त करते प्रेमी की तस्वीर सामने आ जाती है....हल्की हल्की बारिश की ध्वनियाँ और बिजली के कड़कने की आवाज़ मौहोल को और रंगीन बना देती है...जैसे जैसे अंतरे की तरफ हम बढ़ते हैं..."बैठो न दूर हमसे देखो खफा न हो....." श्रोता और भी गीत में डूब जाता है....और खुद को उस प्रेमी के रूप में पाता है, जो शुरुआत में उसकी कल्पना में था....जैसे ही ये रूमानियत और गहरी होने लगती है।

मदन मोहन का संगीत संयोजन जैसे करवट बदलता है, जैसे उस पाए हुए जन्नत के परे कहीं ऐसे आसमान में जाकर बस जाना चाहता हो जहाँ से कभी लौटना न हो...फिर एक बार निशब्दता छा जाती है और लता की आवाज़ में भी वही शब्द आते हैं जो नायक के स्वरों में थे अब तक....बस फिर क्या...."एक नयी ज़िन्दगी का निशाँ मिल गया..." वाकई ये एक लाजवाब और अपने आप में एकलौता गीत है, जहाँ वाध्यों के हर बदलते पैंतरों पर श्रोता खुद को एक नयी मंजिल पर पाता है । मदन मोहन साहब का यह संगीत आज भी रात में सुनसान सड़क पर सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर देता है ।

 संगीतकार मदन मोहन के बारे में संगीतकार खय्याम का कहना है कि वे संगीत के बेताज बादशाह थे। संगीत की जितनी विविधताएं होती हैं, उन सबका उन्हें गहरा ज्ञान एवं समझ थी। जबकि उन्होंने शास्त्रीय अथवा सुगम संगीत का बाकायदा कोई प्रशिक्षण नहीं लिया था। 'मदहोश', 'अंजाम' जैसी फिल्मों में संगीत देने वाले मदन मोहन जिस पहचान के हकदार थे वो उन्हें हासिल नहीं हो पाई।

फ़िल्म "हंसते जख्म" का यह अप्रतिम गीत । यह गीत आज संगीत प्रेमियों में क्लासिक का दर्जा रखता है । आप भी इसे सुनकर यकीनन मदहोश हो जाएंगे । कैफ़ी आज़मी के बोल , मदन मोहन का संगीत और आवाजें लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी की।

Badhate Zakhm // Md Rafi // Madan Mohan Saheb

 #goldenerasongs #भूलेबिसरेगीत #भूलेबिसरेनगमे

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